Book Title: Rajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Author(s): Premsinh Rathod
Publisher: Rajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda

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Page 13
________________ प्रकाशकीय चरम तीर्थंकर भगवान् महावीर स्वामी का धर्म मार्ग प्राणिमात्र के लिए कल्याणकारी है और आत्मोन्नयन की शुभ प्रेरणा देनेवाला है। वह आत्मशुद्धि का प्रेरक है और आज के इस संत्रस्त, दूषित, कलुषित वातावरण में जीवन को एक मंगलकारी, निर्मल और निष्कलुष राह दिखानेवाला है। इतिहास से पता चलता है कि गत शताब्दी न केवल जैन समाज के लिए वरन् संपूर्ण देश के लिए आचार की शिथिलता की शताब्दी थी। जैनाचार कई शताब्दियों से धूमिल, रूढ़िग्रस्त और अन्धविश्वासी हो उठा था। अनेक उन्मार्ग सन्मार्ग को दूषित करने लगे थे। इसी शिथिलाचार के विरुद्ध एक रचनात्मक क्रान्ति का सूत्रपात किया प्रातःस्मरणीय पूज्यपाद गुरुदेव श्रीमद्विजयराजेन्द्र सूरीश्वरजी म. ने। उनके अवतरण से समाज में आचरण-शुचिता की जो निर्मल राहें खुलीं उन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता । परम पूज्य गुरुदेव ने साधन-साध्य की पवित्रता का प्रतिपादन कर सारे जगत् में जैनधर्म की निर्मलताओं का प्रचार-प्रसार किया और उसकी एक लोकमंगलकारी छबि स्थापित की। उन्होंने अपनी अपरिमित ज्ञान-ज्योति में समस्त विश्व को जगमगा दिया । अकेला "श्री अभिधान राजेन्द्र विश्वकोश" ही त्रिस्तुतिक समाज की एक ऐसी मशाल है, जो सदियों तक प्राच्यविद्या के जिज्ञासुओं का मार्ग प्रशस्त एवं आलोकित करती रहेगी। परमपूज्य गुरुदेव की इस यशस्विनी परम्परा में हुए प्रातःस्मरणीय पूज्यपाद श्रीमद्विजययतीन्द्र सूरीश्वरजी म., जिन्होंने भगवान् महावीर द्वारा आलोकित धर्ममार्ग को तो प्रशस्त किया ही, पूज्यपाद गुरुदेव द्वारा प्रवर्तित क्रान्ति को भी अग्रसर किया। उन्होंने श्रीसंघ और समाज को एक सुदृढ़ धरातल प्रदान करने की दृष्टि से श्रीमोहनखेड़ा तीर्थ पर "अखिल भारतीय श्रीराजेन्द्र जैन नवयुवक परिषद्" की स्थापना की। उनके पुण्यशाली करकमलों से वपित यह भाग्यशाली बीज आज एक विशाल वटवृक्ष बन गया है, जिसकी शाखा-प्रशाखाएँ देश में दूरदूर तक फैल गयी हैं और जो आज एक महान् संजीवनी-शक्ति की भाँति उत्साहपूर्वक सक्रिय है । परिषद् के प्रमुख उद्देश्य हैं--१. समाज का संगठन, २. धार्मिक शिक्षा का प्रचार-प्रसार, ३. समाज-सुधार, ४. समाज का आर्थिक विकास । उक्त लक्ष्यों की पूर्ति के लिए परिषद्-कार्यकर्ता दृढ़ संकल्पपूर्वक पुरुषार्थरत हैं; हमें विश्वास है इस कार्य में सबका व्यापक सहयोग सहज ही प्राप्त होगा और हम सफल होंगे। परिषद्-शाखाएँ इतनी भाग्यशालिनी हैं कि उन्हें वर्तमानाचार्य परमपूज्य श्रीमद्विजयविद्याचन्द्र सूरीश्वर म. के शुभाशीष तो प्राप्त हैं ही श्रीमद्विजययतीन्द्र सूरीश्वरजी के सुशिष्य मुनिराज श्रीजयन्तविजयजी 'मधुकर' म, का अनर्थ्य मार्गदर्शन भीसहज उपलब्ध है। उक्त दोनों विभूतियों के तथा अन्य सभी पूज्य मुनिवरों के शुभाशीष ही हमारी पूंजी हैं, जिसके बल पर हम यह सारा कार्य कर पा रहे हैं। प्रस्तुत स्मृति-ग्रन्थ परमपूज्य वर्तमानाचार्यश्री के शुभाशीर्वाद तथा मुनिश्री ‘मधुकर' जी म.सा. की पुण्यप्रेरणा से परमपूज्य गुरुदेव श्रीमद्विजयराजेन्द्र सूरीश्वरजी म. के १५० वें जन्म-संवत्सर पर उनके प्रति एक अकिंचन श्रद्धांजलिस्वरूप समाज को सौंपते हुए हमें अत्यधिक हर्ष हो रहा है। स्पष्ट है, यदि इस बृहद् ग्रन्थ के प्रकाशन में बी.नि.सं. २५०३ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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