Book Title: Rajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Author(s): Premsinh Rathod
Publisher: Rajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda

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Page 11
________________ भक्ति का जीवन्त प्रतीक यह ग्रन्थ 'राजेन्द्र ज्योति' ग्रन्थ का प्रकाशन प्रत्येक सुज्ञजन के लिए प्रसन्नता का विषय एवं उल्लास का वर्द्धक है। श्री वीर परमात्मा के शासन में सुविहित परम्परा के संवाहक परम योगीन्द्राचार्य विश्वपूज्य प्रातःस्मरणीय पू. पा. गुरुदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्र सुरीश्वरजी म. के अवतरण से निश्चित रूप से समाज, संघ और राष्ट्र में चेतना आई और उन्हीं के जीवन से विकास के नये क्षितिज भी उन्मुक्त उद्घाटित हुए । उनकी साहित्य-साधना उन्हें साहित्यर्षि के रूप में प्रकट करती है और उनकी उदारता उन्हें महर्षि के महोत्तम पद पर आसीन करती है। उनकी तपःपूतता उनमें तेजस्वी ज्योतिर्मय स्थिति का प्रकटन करती है और उनकी त्याग-श्रेष्ठता उनके त्याग-वीरत्व का स्पष्ट दर्शन कराती है। विश्ववंद्य गुरुदेव प्रभुश्री के प्रति विद्वज्जगत नतशीश श्रद्धावनत है और प्रत्येक उपासक उनके चरणों में समर्पित है । उनके जन्म से जो ज्योति प्रकाशमान हुई वह अद्यापि पर्यन्त अखण्ड रूप से प्रकाश देती रही है । गुरुदेव के जन्म को एक सौ पचास वर्ष अर्थात् सार्द्ध शताब्दी व्यतीत हो चुकी है । मानव जगत् के लिए पू. पा. गुरुदेव श्री का जन्म जागृति और जीवन्तता का द्योतक है, और उनका संयम व क्रियोद्धार भाववर्द्धक एवं सत्यमार्गदर्शन वरदान स्वरूप रहा है। उन्होंने यावज्जीवन संघ शासन की प्रभावना के कार्य किये हैं। . अ. भा. श्री राजेन्द्र जैन नवयुवक परिषद् की ओर से उन परम उपकारी सरस्वती पुत्र की जन्म सार्द्ध शताब्दी के उपलक्ष्य में श्री "राजेन्द्र ज्योति" ग्रन्थ प्रकाशित किया जा रहा है यह एक सामयिक एवं अपने सद् गुरुदेव के प्रति सच्ची भक्ति का प्रतीक है। स्व. पू. पा. गुरुदेव श्रीमद् विजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी म. के द्वारा परिषद् को स्थापित किया गया और परिषद् अपने लक्ष्य में गतिशील है यह सर्वविदित है । अनेक विध प्रवृत्तियों में परिषद् का इस ग्रन्थ प्रकाशन का कार्य समाज के इतिहासपृष्ठों पर अमिट रूप से अंकित रहेगा। इस कार्य को सम्पन्न करने में सम्पादक-मण्डल ने सराहनीय पुरुषार्थ किया है यह तो स्पष्टतः विदित है ही किन्तु इसमें परिषद् के कर्मठ कार्यकर्ता एवं भू. पू. अ. भा. परिषद् के अध्यक्ष डॉ. श्री प्रेमसिंह राठोड़ एवं परिषद् के कोषाध्यक्ष श्रीशान्तिलालजी सुराणा का अभिनन्दनीय सहयोग, लगन एवं दक्षता को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। डॉ. श्री नेमीचन्दजी जैन, परिषद् के महामंत्री श्री सी. बी. भगत एवं श्री ओ. सी. जैन का सहयोग अविस्मरणीय रहेगा। परिषद् की गतिविदियों से समाज का प्रत्येक गुरुभक्त सुपरिचित है, उसकी उत्तरोत्तर प्रगति की प्रक्रिया चल रही है। गुरुदेवजी ने जिन विचारों को साकार रूप देने का कहा था उन्हें लक्ष्य में रखकर यह संस्था इसी प्रकार से उल्लेखनीय स्मरणीय कार्यों को करने के लिए भी अपने को जागृत चेता बनाये रखेगी ऐसी आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है। ग्रन्थ-प्रकाशन में परिषद् शाखाओं ने एवं परिषद् प्रेमी गुरुभक्तों ने जो लाभ लिया है, अवश्य उन्होंने धन्यवादाह लाभ लिया है। शुभम् -जयन्त विजय 'मधुकर' नीमबाला उपाश्रय, रतलाम ज्ञान पंचमी, २०३४ वी.नि. सं. २५०३ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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