Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 2
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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नहीं हैं जो उन्हें संभाल कर रखें। मन्दिरों में सोना जड़ाने वाले और उसे थोथे वैभव से अलंकृत करने वाले इस अमृत्य साहित्य का क्या मूल्य जानें। उनके लिये तो शास्त्र भण्डार एक श्रद्धा की वस्तु है जिसकी चे पूजा कर सकते हैं, रक्षा नहीं । चूहे और दीमकों की भेंट चढ़ा सकते हैं लेकिन ग्रन्थ को पढने के लिये शास्त्र भण्डार से बाहर निकाल कर किसी को दे नहीं सकते ।
इसी मन्दिर में कुछ ग्रन्थ बोरियों में भरे थे। यह हमारी उस लापरवाही का परिणाम है जिसके अनुसार हम शास्त्रों के पन्ने पड़ने के लिये घर ले जाया करते थे। लेकिन उन्हें कभी वापिस लौटाने का प्रयत्न नहीं करते थे । मेरे लिये यह तो संभव नहीं था कि सारे अपूर्ण ग्रन्थों के पत्रों को ढूंढ कर पूर्ण कर देता फिर भी एक लंबे अर्से के प्रयत्न अथवा छानवान के बाद इनमें से कुछ ग्रन्थों को तो पूर्ण कर लिया गया और कुछ अपूर्ण ग्रन्थों के पन्नों का संकलन भी हो सका । हर्ष की बात है कि इन विकी पन्नों में कुछ ऐसे भी ग्रन्थ मिले जो अभी तक किसी भी शास्त्र भरडार में उपलब्ध नहीं हुये थे। इन ग्रन्थों में महाकवि स्वयम्भूकृत पउमचरिय एवं महाकवि वीर कृत जम्बूस्वामी चरित्र का संस्कृत दिप्पण है। इन्हीं वोरियों में से करीब ५०० अपूर्ण एवं फुटकर का संकलन किया गया। इनमें से कुछ तो इसी सूची में आगये हैं और शेष प्रन्थों को एक इन अपूर्ण होने से छोड दिया गया है ।
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इस भएहार में सब मिला कर २६२६ ग्रन्थ हैं इनमें ३२४ गुटके भी सम्मिलित हैं । इन गुटकों में भिन्न २ छोटे २ पाठों के संग्रह के अतिरिक्त छोटे २ ग्रन्थों का भी संग्रह है। यदि इनमें उपलब्ध साहित्य को देखा जाये ता बहुत से गुटके तो ऐसे मिलेंगे जो एक ही कई प्रन्थों के बराबर हैं । इस शास्त्र भरडार में ग्रन्थों का संग्रह प्राचीनता, श्रेष्ठता एवं अन्य सभी दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है । भाषाओं में संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश एवं हिन्दी इन ४ भाषाओं की रचनाओं का यहाँ संग्रह है । विषय सूची को देखकर पाठकगण जान सकेंगे कि ऐसा कोई उल्लेखनीय विषय नहीं छूटा है जिसके साहित्य का इस भण्डार में संग्रह नहीं किया गया हो । लौकिक एवं पारलौकिक दोनों ही तत्वों से सम्बन्धित साहित्य का उत्तम संग्रह आपको इस भण्डार में मिल सकता है।
इस भण्डार में जैन विद्वानों द्वारा लिखे हुये साहित्य का ही संग्रह नहीं है किन्तु जैनेतर विद्वानों द्वारा लिखित ग्रन्थों का भी यहाँ उत्तम संग्रह है । इन ग्रन्थों में व्याकरण, काव्य, कथा, आयुर्वेद, ज्योतिष, संगीत आदि विषयों से सम्बन्धित साहित्य विशेष उल्लेखनीय है । साहित्य संग्रह में जैनों का हमेशा ही उदार हृटिकोण रहा है। उन्होंने, जहाँ कहीं भी उत्तम साहित्य मिला उसीका बिना किसी भेद भाव के संग्रह करके अपने शास्त्र भरडारों की शोभा को बढाया है । साम्प्रदायिकता की हवा साहित्य संग्रह की नीति में उन्हें छू भी नहीं गयी है।
जैसा कि पहिले कहा जा चुका है इस भण्डार में संस्कृत, अपभ्रंश एवं हिन्दी आदि सभी भाषाओं के साहित्य का उत्तम संग्रह है । संस्कृत साहित्य के उपलब्ध ग्रन्थों में असहस्त्री, उत्तर