Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 2
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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शास्त्र भण्डार पं० लूणकरणजी पांच्या जयपुर
श्री पं० लूणकरणजो का मंदिर जयपुर के प्रसिद्ध एवं प्राचीन मन्दिरों में से एक है । यह लूणा पांड्या के मन्दिर के नाम से अधिक प्रसिद्ध है। पं० लूणकरण जी जैन यति थे, जो पांच्या कहलाते थे। उनका जन्म कब और कहाँ हुश्रा तथा वे कब यति बने आदि विषयों के सम्बन्ध में यहाँ के शास्त्र भण्डार में कोई उल्लेख नहीं मिलता। किन्तु इसी भएडार में यशोधर चरित्र की एक सचित्र प्रति की लेखक-प्रशस्ति । में एक उल्लेख मिला है।
इस प्रशस्ति में पं० लूणकरणजी को यशोधर की प्रति भेंट देना लिखा है। यदि ये ही पं० सूणकरणजी हैं तो इनका समय १८-१६ वीं शताब्दी का होना चाहिये । यह भी हो सकता है कि ये पहिले । कहीं अन्य स्थान में रहते हों और बाद में जयपुर आकर रहने लगे हों और इसो मन्दिर को अपना केन्द्र स्थान बनाया हो।
इसी भण्डार में पं० लूणकरणजी का एक चित्र भी मिला है जिसमें भगवान के एक ओर पं० दूणकरण जो बैठे हुये हैं तो दूसरी ओर राय बन्दजी खड़े हुये हैं । रायचादजो नाम उक्त प्रशस्ति में मो अाया है और उनके द्वारा यशोधर की सचिव प्रति पं० लूणकरणजी को भेंट देना लिखा है। इसलिये इन दोनों के आधार पर इनका समय १८-१६ वीं शताब्दी ही निश्चित होता है। ये भट्टारक जगत्क्रीत्ति के । शिष्य एवं पं० खींवसीजी के शिष्य थे |
जनश्रुति के अनुसार वे इसी मन्दिर में रहा करते थे और अपना अधिकांश समय साहित्य एवं जन सेवा में ही व्यतीत किया करते थे। उनके कितने ही शिष्य थे | उनमें पं० स्वरूपचंदजी प्रमुख थे। । पं० स्वरूपचंदजी भी जयपुर के अच्छे साहित्यकारों में से थे । आयुर्वेद, ज्योतिष एवं मन्त्रशास्त्र आदि के । साहित्य से उनकी विशेष रुचि थी। वे स्वयं भी इन विषयों के विद्वान् थे । यही कारण है कि इस शास्त्र ! भण्डार में मंत्रशास्त्र, ज्योतिष एवं आयुर्वेद आदि विषयों का जयपुर के अन्य शास्त्र भण्डारों की अपेक्षा ! अधिक साहित्य है । यह ग्रन्थ भएडार उन्हीं का संग्रह किया हुआ है। अपने जीवन में १ हजार से अधिक हस्तलिखित प्रन्यों का संग्रह करके उन्होंने साहित्य प्रेम का ज्वलन्त उदाहरण समाज के समक्ष उपस्थित
किया।
इस शास्त्र भण्डार में ८०० हस्तलिखित ग्रन्थ एवं २२५ गुटके हैं। सबसे प्राचीन प्रति इस भण्डार में परमात्मप्रकाश की है जो संवत् १४०७ में लिखी गयी थी । भण्डार में कई सचित्र प्रतियां है इन सब में भट्टारक सकलकीति कृत यशोधर चरित्र उल्लेखनीय है । इसमें लगभग ३५ चित्र हैं जो सभी
: संवत् १७८८ श्रासोज मासे शुक्लपक्षे दशम्यां तिथौ बुधवासरे वृन्दावा नगर्या ...."खंडेलवालान्वये अजमेरा गो...."एतेषां मध्ये चिरंजीत्रि श्री रायचन्दजी तेनेदं यशोधरचरित्रं निजज्ञानावर्णीकर्मदयार्थ भट्टारक श्री जगत्तिं तत् शिष्य विद्वन्मंडलीमंदित पंडितजी श्री खींवसीजी तत् शिभ्य पं० लूणकरणाय घापितं ।