Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 1
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Ramchandra Khinduka

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Page 5
________________ ---प्रकाशकीय वक्तव्य राजपूताना की रियासतों में जयपुर एक ऐसी रियासत है जिससे जैनों का सैकड़ों वर्षों से सम्बन्ध चला आ रहा है। आमेर इसी वर्तमान जयपुर राज्य को प्राचीन राजधानी है । आमेर या अम्बर शहर जयपुर से करीब ५ मील उत्तर में पहाडियों के बीच में बसा हुआ है। जिस समय जयपुर नहीं बना था अप्त समय आमेर ही प्रमुख शहर गिना जाता था और उसमें जैनों के कई बड़े बडे शिखरवंद मंदिर थे जिनकी कारीगरी आज भी देखने योग्य है। आमेर के बाद नई राजधानी जयपुर विक्रम संवत् १७८४ में बनी। उस समय महाराजा सवाई जयसिंहजी कछवाहा राज्य करते थे। महाराजा जनसिंहजी के जमाने में राज्य के मुख्य मुख्य काम दि० जैनों के ही हाथ में थे किन्तु उन के पश्चात इनके द्वितीय पुत्र सवाई माधोसिंहजो जब उदयपुर से आकर अपने बडे भाई महाराज ईश्वरीसिंहजी की जगह राज्य सिंहासन पर बैठे तो उनके साथ उदयपुर के कुछ शंच राजगुरु जयपुर में आये और जैनों से वध भाव रख कर उनके कई विशाल मन्दिरों को हथिया लिया । जैन प्रतिमाओं को तोड दिया गया और उनकी जगह शिवलिंग स्थापित कर दिये गये । उस जमाने में जेलों पर अगणित अत्याचार हुए उनका नमूना आज भी जीर्ण शीर्ण आमेर नगरी में प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर हो रहा है । आमेर के जिन बैन मन्दिरों को बरबाद कर दिया गया वे अाज भी अपने पुराने वैभव तथा अत्याचारियों के अन्याय को दुनिया के सामने प्रकट कर रहे हैं। उन प्राचीन व विशाल मन्दिरों और मूर्तियों के साथ में हमारा कितना ज्ञान भण्डार आततायियों द्वारा नष्ट हुआ होगा उसका कोई अन्दाजा नहीं लगाया जा सकता। उन प्राचीन जैन मन्दिरों में से सिर्फ एक श्री नेमिनाथ भगवान का मंदिर जो सांवलाजी के नाम से प्रसिद्ध है किसी प्रकार बच गया था। इस मंदिर में एक शास्त्र भएडार भी था जो प्राचीन भट्टारकों ने किसी प्रकार बचा कर रख लिया था। भट्टारक श्रा देवेन्द्रकीर्तिजी तक यह भंडार ज्यों का त्यों सुरक्षित रहा, किन्तु इनके बाद करीब ३०४० वर्ष तक देवेन्द्र कीर्ति के उचराधिकारी भट्टारक श्री महेंद्रकी त्तिजी तथा अन्य शिष्यों में मनोमालिन्य रहा और उस जमाने में नहीं कहा जा सकता कि इस शास्त्र भंडार में से कितने ग्रन्थ निकल गये और किस किस के हाथ में जा पडे तथा कितने ग्रंथ चूहों व दीमकों का आहार बन गये। भट्टारक श्री महेंद्र कीर्तिजी के स्वर्गवास के पश्चात् जयपुर पंचायत ने उक्त मंदिर व शास्त्र भंडार को वापिस अपने अधिकार में लिया और तभी से इसको खोल कर देखने व बचे खुचे ज्ञान भंडार की रक्षा करने का सवाल समाज के सामने आया । उस समय जैन धर्म भूषण, ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी ने भी इसके लिये समाज को बहुत प्रेरणा दी। गत कई वर्षों में मुनि महाराजों के चतुर्मास जयपुर में हुये और उनके आग्रह से कई वार उक्त भंडार को खोलने का अवसर भी आया । जो भी शास्त्र भंसार को देखने आमेर गये वे वहां एक को दिन से अधिक नहीं ठहर सके इस लिये ग्रन्थों के वेष्टनों के दर्शन के अतिरिक्त और कोई विशेष लाभ नहीं हो सका।

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