Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 1 Author(s): Kasturchand Kasliwal Publisher: Ramchandra Khinduka View full book textPage 3
________________ प्राक्कथन प्राचीन काल में मन्दिरों में बडे बडे शास्त्र भण्डार हुआ करते थे। इन शास्त्र भण्डारों का प्रवन्ध समाज द्वारा होता था। कुछ ऐसे भी शास्त्र भण्डार थे जिनका प्रवन्ध बट्टारकों के हाथों में था। भट्टारक[स्था ने प्राचीन काल में जैन साहित्य की अपूर्व सेवा ही नहीं की; किन्तु उसे नष्ट होने से भी बचाया २ | नवीन साहित्य के सर्जन में तो इस संस्था का महत्त्वपूर्ण हाथ रहा है। लेकिन जब इनका पतन होने जगा तो इनकी असावधानी से सैंकड़ों शास्त्र दीमक के शिकार बन गये, सैकड़ों स्वयमेव गल गये और सैकड़ों पत्रों को विदेशियों के हाथों में बेच डाला गया। इस तरह जैन साहित्य का अधिकांश भाग सदा के ...ये लुप्त हो गया। लेकिन इतना होने पर भी जैन शास्त्र भण्डारों में अब भी अमुल्य साहित्य बिखरा पड़ा. और उसको प्रकाश में लाने का कोई प्रबन्ध नहीं किया जाता । यदि अब भी इस बिखरे हुये साहित्य ही संकलन किया जावे तो हजारों की संख्या में अप्रकाशित तथा अज्ञात मन्त्र मिल सकते हैं । ? आमेर शास्त्र भण्डार, जयपुर, जिसका विस्तृत परिचय पाठक गए श्री मन्त्री महोदय के वक्तव्य से जान सकेंगे, राजस्थान में ही क्या, सम्पूर्ण भारत के जैन शास्त्र भण्डारों में प्राचीन तथा महत्त्वपूर्ण है। इसमें • संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी आदि भाषाओं के १६०० के लगभग इस्तलिखित प्रन्थों का बहुत ही अच्छा संग्रह है। जिनमें बहुत से ऐसे ग्रन्थ हैं जो अभी तक न तो कहीं से प्रकाशित ही हुये हैं और न सर्वसाधारण की जानकारी में ही आये हैं । अपभ्रंश साहित्य के लिये तो उक्त भण्डार भारत में अपनी कोटिका शायद अन्ना ही है । इस भाषा के अधिकांश मन्त्र अभी तक अप्रकाशित हैं। हिन्दी साहित्य भी यहां काफी मात्रा में है । १५ वीं शताब्दी 'लेकर १६ वीं शताब्दी का बहुत सा साहित्य यहां मिल सकता । भट्टारक सकलकीप्ति, ब्रह्मजिनदास, भट्टारक ज्ञानभूषण, पं० धर्मदास, ब्रह्म रायमल्ल, पं० रूपचन्द, ० श्रखयराज आदि अनेक ज्ञात एवं अज्ञात कवियों और लेखकों के साहित्य का यहां अच्छा संग्रह है। संस्कृत भाषा का साहित्य भी कम महत्वपूर्ण नहीं है । काव्य, न्याय, धर्मशास्त्र, दर्शन, ज्योतिष, युर्वेद आदि सभी विषयों के प्राचीन ग्रन्थों की प्रतियां हैं। कुछ ऐसा साहित्य भी है जो अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ है। इस भण्डार में संस्कृत प्राकृत आदि भाषाओं के लगभग निम्न संख्या वाले प्रन्थ है संस्कृत ५०० हिन्दी १५० अपभ्रश प्राकृत टीका पन्थ ७० ४० 文 इनके अतिरिक्त शेष इन्हीं ग्रन्थों की प्रतियां हैं। शास्त्रों में साहित्य, दर्शन, धर्मशास्त्र, आयुर्वेद, ज्याकरण, स्तोत्र आदि अनेकानेक विषयों का विवेचन किया हुआ मिलता है । प्रन्थों की प्रतियां प्राचीन . है । भण्डार में सबसे प्राचीन प्रति संवत् १३६१ की महाकवि पुष्पदंत द्वारा रचित महापुराण की है। इसक अतिरिक्त १४ वीं शताब्दी से लेकर १८ वीं शताब्दी तक की ही अधिक प्रतियां हैं १६ वीं और २०Page Navigation
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