Book Title: Purusharth Siddhi Upay
Author(s): Amrutchandracharya, Vishuddhsagar
Publisher: Vishuddhsagar

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Page 13
________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 13 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002 भो ज्ञानी ! तीर्थंकर की देशना है कि पंचमकाल में धर्म-धर्मात्मा भी आपस में मिलकर नहीं रह सकेंगे, कषायों और अहंकारों के पोषण में गुट बनाकर यश प्राप्त करेंगे, परन्तु सिद्धांत है कि वह भी यश कीर्ति नाम कर्म के उदय से ही मिलेगा, अन्यथा गुट क्या तुम महागुट बना लेना, भैया! कुछ नहीं होगां तत्त्व तो वही है, जो जिनदेव ने कहा और उसे ही तत्त्व समझों अहो! जिनवाणी स्याद्वादवाणी है, अनेक समीचीन नयों को लेकर, अनेकान्त का गुलदस्ता बनाकर भगवान महावीर स्वामी ने हमें पकड़ा दिया हैं अंदर आप कैसे प्रवेश करेंगे? आप पुरुषार्थसिद्धयुपाय ग्रंथ में झांककर देखना- यह स्याद्वाद अनेकान्त, अध्यात्म, चरणानुयोग का बगीचा हैं. जिनवाणी माता कह रही है कि तुम मेरी भाषा तो समझो, हम तुमको भगाना नहीं, बुलाना चाहते हैं तूने संसार की माताओं के आँचल का दुग्धपान तो अनेक बार किया है, एक बार मेरे आँचल का पान कर लें तेरी माँ ने तो केवल दो आँचल पिलाये हैं, पर बेटा! मेरे आँचल चार हैं और यह चार अनुयोग हैं, जो यही कह रहे हैं कि अपने प्रभु को सँभालों आज वीरशासन- जयंति हैं वीर प्रभु की प्रवचन सभा का नाम था समवसरणं जहाँ पर प्राणीमात्र के लिए समान शरण प्राप्त हो, वह समवसरण कहलाता हैं जिस सभा में यह भेद नहीं कि चक्रवर्ती है कि तिर्यंच हैं अहो ! कैसी वे पुण्य वर्गणाएँ होगी प्रभु परमेश्वर की, कि एक ही घाट पर सिंहनी और गाय पानी पी रहे हैं गाय का बछड़ा सिंहनी के आँचल का पान कर रहा हो और सिंहनी का बच्चा गाय के आँचल का पान कर रहा हों यह थी वीर जिनेश्वर के समवसरण की महिमां इसलिए जिनके शासन में आप विराजे हो उनके शासन की याद भर कर लिया करो, प्रभु! आपके शासन की यह महिमा थी कि जन्मजात -विरोधी जीव भी अपने बैर-विरोध को छोड़कर पहुँच गये थे और सभी परमेश्वर को एकटक निहार रहे थें हे प्रभु! आपकी देशना में क्या खिरनेवाला है? उसी समय गौतमस्वामी ने ने वर्द्धमान तीर्थंकर के समवसरण में पहुँच कर नमन कियां अहो! गौतमस्वामी का पुण्य भी कम नहीं था कि जिनके बिना तीर्थेश की वाणी नहीं खिरी थीं. भो ज्ञानी! सुनना तो सभी चाहते हैं, परंतु प्रश्न करने की क्षमता सबके अंदर नहीं होतीं साठ हजार प्रश्न किये थे राजा श्रेणिक नें उन्होंने साठ हजार प्रश्न करके अपना ही कल्याण नहीं किया वरन् हम सभी का भी कल्याण किया हैं कभी-कभी प्रश्नकर्ता के प्रश्नों से पता नहीं कितने लोगों की गुत्थियाँ सुलझ जाती हैं अहो! कितने जीवों के 'शंका' नाम के अतिचार को राजा श्रेणिक ने नष्ट कर दियां वह पूछता है, हे प्रभु! यह यतिधर्म, श्रावकधर्म और सर्वांग अनेकांत वस्तु क्या है ? धर्म का स्वरूप क्या है? और, प्रभु ! लोक में नमन करूँ तो किसे करूँ? प्रभु! ऐसी युक्ति बताओ कि चौबीसों की वंदना हो जाये, साथ में अनन्तानन्त सिद्धों की भी वंदना हो जायें अहो! यह भूमिका अमृतचंद्र स्वामी पुरुषार्थसिद्धयुपाय में निभा रहे हैं, नमस्कार कर रहे पर किसी का नाम नहीं ले रहे हैं, क्योंकि विवाद नमन में नहीं है, नाम में हैं अतरू इस मंगलाचरण में अनेकान्त Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact: akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com

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