Book Title: Purusharth Siddhi Upay
Author(s): Amrutchandracharya, Vishuddhsagar
Publisher: Vishuddhsagar

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Page 11
________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 11 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002 मंगलाचरण तज्जयति परं ज्योतिः समं समस्तैरनन्तपर्यायैः दर्पणतल इव सकला प्रतिफलति पदार्थमालिका यत्र i अन्वयार्थः यत्र = जिसमें दर्पणतल इव = दर्पण के सतह की तरहं सकला पदार्थ मालिका = समस्त पदार्थों का समूह समस्तैरनन्तपर्यायैः समं अतीत, अनागत और वर्तमान काल की समस्त अनन्त पर्यायों सहित प्रतिफलति =प्रतिभाषित होता हैं तत् = वहं परं ज्योतिः जयति = सर्वोत्कृष्ट शुद्ध चेतनारूप प्रकाश जयवन्त हों दृ मनीषियो ! अंतिम तीर्थेश वर्द्धमान स्वामी के शासन में हम सभी विराजते हैं आज पावन सुकाल है, मंगलभूत है, जिस मंगलमय काल में अंतिम तीर्थेश वर्द्धमान स्वामी की पावन - पीयूष वाणी आज 'वीरशासन जयंति' के दिन खिरी थीं अनेक जीव दृष्टि को लगाये बैठे हुये थे, हे प्रभु! आपका रूप तो उपदेश दे रहा है, परंतु मैं चाहता हूँ रूप का उपदेश तो आँखों ने सुना है, पर कर्ण प्यासे हैं एक-दो दिन नहीं, पैंसठ दिन निकल चुके, तदन्तर योग्य पात्र को देखते ही ओंकारमयी स्वर से वाणी खिरने लगी, "जिसमें सात तत्व, नौ पदार्थ, पंचास्तिकाय, छह द्रव्यों का कथन किया गयां अनेकान्त - स्याद्वादमयी वह जिनेन्द्र-वाणी आज के दिन ही खिरी थी, अतएव आज से महावीर स्वामी का शासन प्रारंभ हो गयां यह नियम है कि तीर्थंकर का शासन तीर्थंकर के जन्म से नहीं वरन् तीर्थंकर - प्रकृति के उदय से प्रारंभ होता है और तीर्थंकर - प्रकृति का उदय तेरहवें गुणस्थान में होता है, जहाँ केवलज्ञान - सूर्य उदित होता हैं मिथ्यात्व का अंधकार नष्ट कर कैवल्य की जाज्वल्यमान किरणें उदित हुईं केवली भगवान के कैवल्य को होते ही देव निहारने लगें एक जगह ऐसा भी उल्लेख है कि इन्द्रभूति बहुत बड़ा यज्ञ कर रहा था वह अपने शिष्यों से बोला- यह याज्ञिक - धर्म ही सर्वश्रेष्ठ हैं आकाश की ओर निहारो कि मेरी आहूति से प्रसन्न होकर देवता आ रहे हैं परंतु देखते-देखते संपूर्ण देव आगे बढ़ गये, तो इन्द्रभूति सोचने लगा- क्या मेरे सिवाय और भी कहीं कोई यज्ञ हो रहा है? हे शिष्यो! आप मालूम करो कि किसका यज्ञ चल रहा है? एक शिष्य कहने लगा, हे स्वामी! नाथपुत्र का यज्ञ भी चल रहा है, वर्द्धमान को कैवल्य की प्राप्ति हुई है, उस कैवल्य की पूजा करने के लिए ही यह देवता वहाँ जा रहे हैं Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com

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