________________
उपरोक्त पृथ्वीचन्द्रचरित्रों के अलावा एक पुरानी गुजराती भाषा में रचा हुआ पृथ्वीचन्द्रचरित्रबालावबोध है । इसकी विक्रम की १६ वी सदी में लिखी हुई एक महत्त्व पूर्ण प्रति कई वर्ष पूर्व मैंने पुरातत्वाचार्य मुनि श्री जिनविजयजी के पास जयपुर में देखी थी। संभव है कि यह बालावबोध आ० शान्तिसूरिरचित पृथ्वीचन्द्रचरित्र के आधार से ही तैयार किया हो। क्योंकि यह पोथी लगभग सौ पन्ने की थी।
यहाँ जिन पृथ्वीचन्द्रचरित्रों का परिचय दिया है वें ग्यारह भवात्मक हैं । अन्तिम ग्यारहवें पृथ्वीचन्द्र-गुणसागर के भव को बतानेवाली पुरानी गुजराती में रची हुई कुछ कृतियाँ इस प्रकार है
१. वि. सं. १६९६ में तपागच्छीय पं. श्री भानुचन्द्रवाचक ने पृथ्वीचन्द्ररास की रचना की। इसकी प्रति श्री लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर (अहमदाबाद) के हस्तलिखित भण्डार में भी सुरक्षित है । २. वि. सं. १५५६ से पूर्व रचा हुआ अज्ञात कर्तृक पृथ्वीचन्द्र-गुणसागररास । इस छोटी सी कृति की जानकारी
ओ' भाग ३ खं. १ के ४३७ पृष्ठ में से ली है। इसकी विक्रमीय १७ वीं सदी में लिखी हुइ एक प्रति ला. द. विद्यामन्दिर के भण्डार में है।
३. जीवविजयकृत पृथ्वीचन्द्रसज्झाय । यह रचना छोटे रास जैसी है । यह कृति श्री हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानभण्डार (पाटन) में सुरक्षित श्री शुभवीर जैन ज्ञानभण्डार के सिवाय अन्यत्र कहीं भी दृष्टिगोचर नहीं हुई। इस प्रति के पत्र पांच है। अनुमानतः इसका लेखनसमय वि० की १९ वीं सदो का हो ऐसा लगता है। पाटण भण्डार की सूची में इसका क्रमांक ५५८२ है।
यदि विशेष अन्वेषण किया जाय तो उपरोक्त रचनाओं के सिवाय पृथ्वीचन्द्र चरित्र की अन्य रचनाएं भी अन्यान्य ज्ञान भण्डारी से उपलब्ध होना असम्भव नहीं है।
दूसरी परम्परावाले अर्थात् माणिक्यसुन्दर कृत पृथ्वीचन्द्र चरित्र की कथावस्तुवाले अन्यान्य विद्वानों द्वारा रचे गये पृथ्वीचन्द्रचरित्र की सूची इस प्रकार है
१. वि. सं. १४७८ में गद्यगुजरातीभाषानिबद्ध श्री माणिक्यसुन्दररचित पृथ्वीचन्द्रचरित्र । इस कृति का अपरनाम 'वागविलास' है । और वह डॉ० भूपेन्द्र त्रिवेदी और डा० अनसूया भूपेन्द्र त्रिवेदी द्वारा ई० स० १९६६ में सुसम्पादित होकर मुद्रित हुआ है।
२. वि. सं. १५४५ में पधगुजरातीभाषानिबद् श्री सोमदेव अथवा श्री महेन्द्रसूरिरचित पृथ्वीचन्द्रचरित्र । इस कति का अन्यत्र भी कहीं उल्लेख हआ है यह मेरी जानकारी में नहीं है। इसकी एक मात्र प्रति श्री लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर (अहमदाबाद ) में स्थित अनेक हस्तलिखित ग्रन्थसंग्रहों में से श्री ला० द० विद्यामन्दिर के तरफ से खरीदे हए ग्रन्थसंग्रह में है। इसका क्रमाङ्क ४३४९ है। इस क्रमाङ्कवाले गुटके में पृथ्वीचन्द्रचरित्र के सिवाय दसरी अनेक कृतियाँ भी है। अन्त में लेखन संवत नहीं है किन्तु अनुमान से कहा जा सकता है कि यह प्रति विक्रम की १७ वी सदी में लिखी हुई होगी। इस अपरिचित कृति का परिचय इस प्रकार है - यह लघु ग्रन्थ चार अधिकारों में रचा हुआ है। ग्रन्थ के अन्त में कर्ता के नाम को बतानेवाला पद्य पाठ और गद्यसंस्कृत में लिखी हुई पुष्पिका का पाठ
इस प्रकार है
" पुण्यप्रबन्ध ए सांभली, जे नित धर्म करंति । सोमदेव कहई तिहा(है) घरि, ऋद्धि वृद्धि निगहंति ॥ पनरपयालइ संक्छ(च्छ)ग्इ, मेडतापुरी रंगि । पृथ्वीचन्द्रचरित्र रचिउ, आणीय ऊलटि अंगि ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org