Book Title: Pratishtha Saroddhar Author(s): Ashadhar Pandit, Manharlal Pandit Publisher: Jain Granth Uddharak Karyalay View full book textPage 4
________________ | ॐ नमः परमष्ठिभ्यः । प्रस्तावना। उन्न्कल | प्रिय पाठकगण ! अब मैं श्री जिनेंद्रदेवको कृपासे उस अपूर्व ग्रंथ प्रतिष्ठासारोद्धारको भाषाटीकासहित वनाके आपके सामने उपस्थित करता हूं कि जिसकेलिये आप सब साधर्मीगण उत्कंठित होरहे थे । गृहस्थ श्रावकोंका देवपूजा करना नित्य कोंमेंसे पहला कर्तव्य कहा है, उसकेलिये जिनदेवकी प्रतिमा तथा मंदिरकी स्थापना होना बहुत आवश्यक है। उसी स्थापनाकी पंचकल्याणक आदि विधियां इस महान ग्रंथमें स्पष्ट रीतिसे वर्णनकी गई हैं। इसका फल ग्रंथकारने स्वयं दिखलाया है कि पहले महाराज भरतचक्रवर्ती आदि महान पुरुष भी इसी जिन प्रतिष्ठाके करनेसे निराकुल मोक्षसुखको प्राप्त हुए हैं। परंतु कालकी कुटिलगतिसे आजकल बहुत कुछ विपरीतपना फैल गया है। पहले तो प्रतिष्ठाकरानेवाले धनिक यजमानोंको यही खबर नहीं कि प्रतिष्ठाकरानेका क्या फल है तथा हमकोPage Navigation
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