Book Title: Prakritmargopadeshika
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 9
________________ और प्रकाशन में संलग्न रहते हैं और प्राकृत भाषा के व्याकरण की महत्त्वपूर्ण रचनाएँ प्रकाशित कराते हैं । इन विषयों में गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र के जैन पण्डितों की देन अपरिसीम है । प्राकृत भाषा, विशेषकर अर्द्धमागधी, संस्कृत और पालिके साथ ही साथ एक मुख्य प्राचीन भाषा के रूप में छात्रों के अध्ययन के लिए नियत की गई थी, इसलिए प्राकृत के प्राध्यापकों ने अंग्रेजी में दो-चार अच्छो पुस्तकें प्रकाशित की थी । इसके अतिरिक्त गुजराती में जो मौलिक विचार के साथ ग्रंथ निकलते जाते हैं वे गुजरात के बाहर लोगों को दृष्टिगोचर नहीं होते। हमारे श्रद्धास्पद मित्र पण्डित बेचरदास जीवराज दोशो गुजरात के प्रमुख भाषातात्त्विकों में गिने जाते हैं । आप गुजराती, संस्कृत, प्राकृत, मराठी, हिन्दी प्रभृति भाषाओं के प्रकाण्ड पण्डित हैं । गुजराती में आपने बहुत वर्ष पहले "गुजराती भाषा नी उत्क्रान्ति' नामक एक भाषाशास्त्रानुगत विचारपूर्ण ग्रन्थ लिखा था। मुझे इनके साथ परिचित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है और जब उनसे मेरा पहला साक्षात्कार हुआ तभी से मैं उनका गुणग्राही रहा हूँ और उनके साथ पत्र-व्यवहार करता आया हूँ। “पुत्रे तोये यशसि च नराणाम् पुण्य-लक्षणम्" यह शास्त्रवचन इनके लिए सार्थक बना है। आप के सुपुत्र चिरंजीव प्रबोध ने अपने पिता के द्वारा अनुसत वाकतत्त्व विद्या को अपनाया है और इस विद्या में अनन्य साधारण योग्यता दिखाई है। जब श्री प्रबोधजी पूना के डेकन कॉलेज के भाषातत्त्व विभाग में अध्ययन, गवेषणा और अध्यापन करते थे उसी समय से उनसे मेरा गहरा परिचय रहा है। बाद में वे अमरीका जाकर आधुनिक अमरीकी शैली में पूर्ण रूप से निष्णात बन कर लौट आये और आजकल दिल्ली विश्वविद्यालय में भाषातत्त्व के मुख्याध्यापक नियुक्त किये गये हैं । इस प्रकार पिता की परम्परा पुत्र ने सुरक्षित रक्खी है। प्रस्तुत पुस्तक श्रीमान् दोशीजी की गुजराती पुस्तक का हिन्दी अनुवाद है। इसके द्वारा हिन्दी संसार तथा छात्र-समाज का एक अभाव दूर हआ। इसमें प्राकृत भाषा का साधारण विचार भली भाँति किया गया है और विभिन्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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