Book Title: Prakritmargopadeshika
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 10
________________ प्राकृतों का वैशिष्टय दिखाया गया है। जैसे, उन्होंने लिखा है-"प्रस्तुत पुस्तक में प्राकृत, पालि, शौरसेनी, मागधी, पैशाची तथा चूलिकापैशाची और अपभ्रंश भाषा के व्याकरण का समावेश किया गया है, अतः प्राकृत भाषा से उक्त सभी भाषाएँ समझनी चाहिए।" ऐसे इस पुस्तक को पिशेल के बृहत् प्राकृत व्याकरण* ( जो जर्मन भाषा में लिखित इस विषय का सबसे प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है ) का एक गुटका संस्करण कहा जाय तो अत्युक्ति नहीं होगी। मेरे विचार में इस पुस्तक का प्रकाशन हिन्दी का महत्त्व बढ़ायेगा और हिन्दीभाषी इससे प्रचुर लाभ उठा सकेंगे और ग्रन्थकर्ता के आभारी रहेंगे । इस काम के लिए वाक्तत्त्वविद्या के एक अनुरागी की हैसियत से मैं भी पंडित बेचरदासजी का आभारी हूँ। आशा है कि आप भविष्य में ऐसे और भी उपयोगी ग्रन्थ या निबंध प्रकाशित कराकर देश में शिक्षा और ज्ञान फैलाने के काम में लगे रहेंगे और इसलिए हम सब उनके स्वस्थ दीर्घायुष्य की कामना करते हैं। ग्रंथ माना विचार में इस लाभ उठा सुनीति कुमार चाटुा राष्ट्रीय ग्रन्थालय कलकत्ता वैशाखी पूर्णिमा ( बुद्ध पूर्णिमा ) १२ मई १९६८ * पिशेल के जर्मन ग्रन्थ का अंग्रेजी अनुवाद डा० सुभद्र झा ने किया है और इसका हिन्दी अनुवाद डॉ० हेमचन्द्र जोशी ने। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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