Book Title: Prakrit aur Jain Dharm ka Adhyayan Author(s): Prem Suman Jain Publisher: Kundkund Bharti Trust View full book textPage 6
________________ प्राकृत अध्ययन : दशा एवं दिशा - प्राकृत भाषा और उसका साहित्य जन सामान्य की संस्कृति से समृद्ध है। स्वाभाविक रूप से प्राकृत भाषा जनता से सम्पर्क रखने का एक आदर्श साधन बन जाती है । इसीलिए प्राकृत भाषा को समुचित आदर प्रदान करते हुए तीर्थंकर महावीर , सम्राट अशोक एवं खारवेल जैसे महापुरुषों ने अपने संदेशों के प्रचार-प्रसार के लिए प्राकृत का उपयोग किया है। जैन आगमों में प्राकृत का सर्वाधिक प्रयोग हुआ है , किन्तु वेदों की भाषा में भी प्राकृत भाषा के तत्वों का समावेश है । भारत के अधिकांश प्राचीन शिलालेख प्राकृत में हैं। प्रारम्भ से ही इस देश के नाटकों में प्राकृत का प्रयोग होता रहा है । ये सभी विवरण हमें सूचना देते हैं कि इस देश की जनता की स्वाभाविक भाषा, मूलभाषा प्राकृत रही है। समय समय पर सामान्य जन की विभिन्न बोलियां साहित्यिक प्राकृत का रूप भी ग्रहण करती रही हैं। प्राकृत से अपभ्रंश एवं अपभ्रंश से आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास हुआ है। जैन श्रमण प्राकृत की विभिन्न बोलियों का अच्छा ज्ञान रखते थे । उनके धार्मिक उपदेश सदैव प्राकृत में होते थे । उनके द्वारा लिखित महत्वपूर्ण दार्शनिक एवं कथात्मक साहित्य के काव्य , नाटक , स्तोत्र , उपन्यास आदि ग्रन्थ सरल एवं सुबोध प्राकृत में हैं। इसके अतिरिक्त कथा , दृष्टान्त-कथा, प्रतीक कथा , लोककथा आदि विषयक ग्रन्थ भी प्राकृत में लिखे गये हैं , जो मानव मूल्यों और नैतिक आदर्शो की सही शिक्षा देकर व्यक्ति को श्रेष्ठ नागरिक बनाते हैं । प्राकृत में लिखे गये सबसे प्राचीन ग्रन्थ आगम कहे जाते हैं । इनमें जैनधर्म एवं दर्शन के प्रमुख नियम वर्णित हैं और विभिन्न विषयों पर अनेक सुन्दर कथाएं दी गयी हैं । आगम और उसका व्याख्या साहित्य प्राकृत कथाओं का अमूल्य खजाना है । प्राकृत लेखकों के द्वारा कुछ महत्वपूर्ण धर्मकथा ग्रन्थ भी लिखे गये हैं , जो कथाओं के कोश हैं । प्राकृत में कई प्रकार के काव्य ग्रन्थ भी उपलब्ध हैं । कई कवियों एवं अलंकार-शास्त्रियों ने अपने लाक्षणिक ग्रन्थों में प्राकृत की सैकड़ों गाथाओं को उद्धृत कर उनकी सुरक्षा की है । प्राकृत साहित्य के इस विशाल समुद्र के अवगाहन से वह अनुपम एवं बहुमूल्य सामग्री प्राप्त होती है , जो भारत के सांस्कृतिक इतिहास का सुन्दर चित्र प्रस्तुत करने में सक्षम है । देश के स्वर्णयुग की अवधि में कई साहसी समुद्र यात्राएँ व्यापारियों द्वारा की जाती थीं । उनके विस्तृत विवरण प्राकृत साहित्य में उपलब्ध हैं । ये समुद्र-यात्राओं के वृतान्त भारत के गौरव को रेखांकित करते हैं कि उस समय विभिन्न देशों के साथ हमारे सांस्कृतिक सम्बन्ध प्राकृत और जैनधर्म का अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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