Book Title: Prakrit aur Jain Dharm ka Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 20
________________ जैनविद्या-शोधप्रबन्धों का प्रकाशन करें । अभी तक कुल हुए शोधकार्य का लगभग 20 प्रतिशत ही प्रकाशित है। जैनविद्या शोध के विकास में जैन सिद्धान्तभास्कर आरा , प्राकृतविद्या (दिल्ली) अनेकान्त नई दिल्ली , तुलसीप्रज्ञा लाडनूं , श्रमण ( वाराणसी ) , जैनविद्या श्रीमहावीरजी , अर्हत्वचन इन्दौर , शोधादर्श ( लखनऊ) , जैनजर्नल (अंग्रेजी-कलकत्ता ) तीर्थंकर ( इन्दौर ) जिनवाणी (जयपुर ), सम्बोधि (अहमदाबाद ), जिनवाणी (जयपुर) , जिनमंजरी ( अंग्रेजी-कनाडा ) आदि पत्रिकायें कार्यरत हैं । जैनविद्या के शोध-प्रबन्धों का विषयवार विवरण : (1) संस्कृत भाषा एवं साहित्य 140 (2) प्राकृतभाषा एवं साहित्य-40, (3) अपभ्रंश भाषा एवं साहित्य- 65, (4) हिन्दी भाषा एवं साहित्य- 90, (5) जैन गुजराती/मराठी /राजस्थानी दक्षिण भारतीय भाषायें- 85 (6) व्याकरण एवं भाषाविज्ञान- 34 (7) जैनागम-30 (8) जैन न्याय/दर्शन- 110 (9) जैन पुराण35 (10) जैन नीति/ आचार/ धर्म/योग-42, (11) जैन इतिहास/ संस्कृति/ कला/ पुरातत्व-70 (12) जैनबौद्ध तुलनात्मक अध्ययन- 20 (13) जैन एवं वैदिक साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन-25 (14) जैन रामकथा साहित्य- 40 , (15) व्यक्तित्व/ एवं कृतित्व-60 (16) जैनविज्ञान एवं गणित- 12 (17) जैन समाजशास्त्र- 13 (18) जैन अर्थशास्त्र-05 (19) जैनशिक्षाशास्त्र- 06 (20) जैन राजनीति- 14 (21) जैन मनोविज्ञान एवं भूगोल- 07 (22) अन्य - 30 , (23) विदेशी विश्वविद्यालयों से शोध प्रबन्ध लगभग 80 । विशेष विवरण के लिए देखें- 1-प्राकृत एवं जैनविद्या : शोध सन्दर्भ (द्वितीय संस्करण ) : डॉ. कपूरचन्द जैन , प्रकाशक : श्री कैलाशचन्द्र जैन स्मृति न्यास, खतौली 1991 2-प्राकृत एवं जैन विद्या शोध सन्दर्भ ( परिशिष्ट ) 1993 प्राकृत एवं जैनविद्या को आचार्यों एवं मुनियों का अवदान प्राचीन समय में जैनाचार्य एवं मुनियों ने प्राकृत-अपभ्रंश साहित्य को समृद्ध करने और जैनविद्या की समुन्नति में अनुपम योगदान किया है। वर्तमान युग में भी कतिपय आचार्य एवं मुनि इस क्षेत्र में सक्रिय रहे। विगत सदी में जिन जैन सन्तों ने प्राकृत भाषा एवं साहित्य के विकास के कार्य को प्राथमिकता दी उनमें आचार्य राजेन्द्रसूरि, आचार्य आत्माराम जी महाराज के जैनविद्या के ग्रन्थ शोधकर्ताओं के लिए आदर्श हैं । विगत दशक में स्वर्गीय आचार्य श्री आनन्द प्राकृत और जैनधर्म का अध्ययन 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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