________________
1988 में डॉ. कपूरचन्द जैन ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली के आर्थिक सहयोग से ' A Survey of Prakrit & Jainological Research. प्रोजेक्ट पूर्ण किया । जो रिपोर्ट आयोग को भेजी गई, उसमें 425 शोध- प्रबन्धों की सूची थी । 1988 में ही इस रिपोर्ट का प्रकाशन श्री कैलाशचन्द जैन स्मृति न्यास से प्राकृत एवं जैनविद्याः शोध सन्दर्भ नाम से हुआ । मई 1991 में प्राकृत एवं जैनविद्या शोध-सन्दर्भ का दूसरा संस्करण उक्त न्यास ने प्रकाशित किया , जिसमें लगभग 600 देशी तथा 35 विदेशी शोध-प्रबन्धों का परिचय था ; साथ ही जैन-विद्याओं के शोध में संलग्न व विश्वविद्यालयों , संस्थानों , पत्रपत्रिकाओं , प्रकाशकों , शोध-निदेशकों का संक्षिप्त परिचय दिया गया था। शोधरत 55 शोधार्थियों एवं 95 शोध- योग्य विषयों की सूची इसमें दी गई है। इसके बाद लगभग 150 और शोध-प्रबन्धों की जानकारी 1993 में शोध-सन्दर्भ का परिशिष्ट निकाल कर दी गई । इसका तीसरा संस्करण प्रकाशनार्थ तैयार है।
वर्तमान में लगभग 73 विश्वविद्यालयों से प्राकृत और जैनविद्याओं में शोध-उपाधियाँ दी गई हैं । पन्द्रह विश्वविद्यालयों में प्राकृत एवं जैनविद्या अध्ययन के लिए स्वतन्त्र या संयुक्त विभाग हैं , सत्रह शोध-संस्थान जैनविद्याओं पर शोध हेतु संलग्न है। गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद में वर्ष 1993-94 अन्तर्राष्ट्रीय जैन अध्ययन केन्द्र की स्थापना की गई है। यह केन्द्र जैन अध्ययन के सन्दर्भ में एक पूर्ण स्थापित केन्द्र होगा । इसमें एम. ए. एम. फिल. विद्यावाचस्पति विद्यावारिधि आदि के पूर्ण कालिक और अंशकालिक पाठ्यक्रम होंगे । पूर्णकालिक पाठ्यक्रमों के लिए छात्रवृत्तियों की भी व्यवस्था की गई है। प्राकृतभाषा और साहित्य , जैनदर्शन, जैन कला , जैन पाण्डुलिपि विज्ञान आदि का गहन अध्ययन अध्यापन यहाँ होगा |
जैनविद्या के प्रबन्धों एवं उच्चस्तरीय ग्रन्थों को प्रकाशित करने वाली संस्थायें गिनी चुनी है। इनमें भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली , पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान , वाराणसी ; इंस्टीट्यू ऑफ प्राकृत जैनोलोजी एण्ड अहिंसा , वैशाली (बिहार) , एल. डी. इंस्टीट्यूट ऑफ इण्डोलोजी , अहमदाबाद (गुजरात) बी. एल. इन्स्टीटयूट आफ इण्डालाजी , दिल्ली ,श्री कुन्दकुन्द भारती प्राकृत संस्थान, नई दिल्ली , शारदा बेन रिसर्च इन्स्टटीयूट अहमदाबाद , आगम अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान , उदयपुर राष्ट्रीय प्राकृत अध्ययन एवं शोध संस्थान, श्रमणबेलगोला , आदि के नाम लिए जा सकते हैं। भविष्य में सम्भव है कोई ऐसी संस्था/ संस्थायें प्रकाश में आये जो एकल या संयुक्त रूप से
प्राकृत और जैनधर्म का अध्ययन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org