Book Title: Prakrit aur Jain Dharm ka Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 23
________________ साथ ही प्राकृत भाषा को अन्य भारतीय संवैधानिक भाषाओं के समान ही एक संवैधानिक भाषा की प्रतिष्ठा प्रदान करे । 2- आचार्य कुन्दकुन्द स्मृति ( वार्षिक ) व्याख्यानमाला का आयोजन इसके अन्तर्गत ला. ब. शा. राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ नई दिल्ली में सन् 1995 से प्रतिवर्ष भारत - विख्यात विशेषज्ञ विद्वान् के दो या तीन शोध- -परक व्याख्यान उक्त संस्कृत विद्यापीठ में आयोजित किये जाते हैं । उक्त व्याख्यानमाला के अन्तर्गत अभी तक प्रो. नथमल टाटिया, डॉ. लक्ष्मीनारायण तिवारी, डॉ॰ भोलाशंकर व्यास, प्रो. राजाराम जैन, डॉ. देवेन्द्र कुमार शास्त्री प्रो. प्रेम सुमन जैन, उदयपुर के व्याख्यान हो चुके हैं । 3- प्राकृत-शिक्षण राष्ट्रीय संस्कृत - विद्यापीठ नई दिल्ली में आचार्यश्री विद्यानन्द जी की प्रेरणा से तथा प्रो० डॉ. मण्डन मिश्र और कुलपति वाचस्पति उपाध्याय के सत्प्रयत्न से सन् 1995 से प्राकृत विषयक एक- एक वर्षीय सर्टिफिकेट तथा डिप्लोमा कक्षाएँ प्रारम्भ की गई। छात्र / छात्राओं की उत्साहवर्धक अभिरूचि देखकर उक्त विद्यापीठ में सन् 1998-99 से स्वतन्त्र प्राकृत विभाग की स्थापना कर उसमें आचार्य तक की कक्षाएँ प्रारम्भ कर दी गई हैं। प्राकृत भाषा एवं साहित्य के उन्नयन की दिशा में यह प्रयत्न इस सदी के अन्तिम चरण एवं नई सदी के प्रारम्भिक चरण का बड़ा ही मांगलिक कार्य माना जायेगा । डॉ. सुदीप जैन एवं डॉ. जयकुमार उपाध्ये इस प्राकृत विभाग के शिक्षणकार्य में संलग्न हैं । 4- प्रकाशन- श्री कुन्दकुन्द भारती ने अभी तक आचार्य कुन्दकुन्द साहित्य के अतिरिक्त ऐतिहासिक मूल्य के 18 ग्रन्थों एवं उपयोगी ट्रेक्ट्स का प्रकाशन किया है। ऐसे प्रकाशनों में संस्कृत / विद्यापीठ में स्वीकृत पाठ्यक्रमानुसार उसके प्रायः सभी ग्रन्थों का प्रकाशन किया गया है और उन्हें प्राकृत के प्रचारप्रसार की दृष्टि से छात्र-छात्राओं प्राध्यापकों एवं प्राकृत के जिज्ञासुओं को निःशुल्क वितरण किया जाता है । 5- प्राकृतविद्या पत्रिका श्री कुन्दकुन्द भारती की त्रैमासिक शोध - पत्रिका प्राकृतविद्या सन् 1988 से नियमित रूप से प्रकाशित हो रही है, जिसमें प्रकाशित मौलिक एवं रोचक शोध सामग्री देश-विदेश में सर्वत्र चर्चित है और पाठक गण अगले अंक की प्राप्ति के लिए व्यग्र रहा करते हैं । इसके संस्थापक सम्पादक प्रो. प्रेम सुमन 22 1 Jain Education International प्राकृत और जैनधर्म का अध्ययन For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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