Book Title: Prakrit aur Jain Dharm ka Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 28
________________ आपकी विदुषी धर्मपत्नी प्रो. विद्यावती जैन ने दिसम्बर 1998 में बिहार विश्वविद्यालय मुजपफरपुर से जैन हिन्दी साहित्य विषय लेकर डी. लिट् की उपाधि प्राप्त की उनका विषय था- महाकवि देवीदास और उनके अप्रकाशित हिन्दी साहित्य का समीक्षात्मक अध्ययन । आपकी अन्य प्रकाशित रचनाएँ हैं : 1- देवीदास विलास श्री गणेशवर्णी दिगम्बर जैन संस्थान वाराणसी 2-मदनजुद्धकाव्य- भारतीय अनेकान्त विद्वत्परिषद् सन् 1998 3 - महावीररास - पूज्य उपाध्याय ज्ञानसागर जी की प्रेरणा से प्राच्य श्रमण भारती, आरा (बिहार) ने इसका प्रकाशन किया है । 4- पज्जुण्णचरिउ भारतीय ज्ञानपीठ नई दिल्ली । " 5- बाहुबलि कथा - युगों युगों में - श्रीमहावीरजैन विद्या संस्थान श्री महावीर जी (राजस्थान) ने इस ग्रन्थ का प्रकाशन किया है। शारदाबहन चिमनभाई एज्युकेशनल रिसर्च सेन्टर, दर्शन बंगलो, रणकपुर सोसायटी के सामने शाहीबाग, अहमदाबाद संस्थान के प्रमुख प्रकाशन 1-Catalogue of the Manuscripts of Patan Jain Bhandra Parts I-IV संकलनकर्ता - स्वर्गीय मुनि श्री पुण्यविजयजी संपा. मुनि जम्बूविजय जी 1991, पूरासेट का मूल्य - 1600 /- रूपये ; 2-A Treasury of Jain Tales: by Prof V. M. Kulkarni 1994, 200/3- न्यायावतार सूत्र : सिद्धसेन दिवाकर; विवेचक पं. श्री सुखलाल संघवी । 1995 पृष्ठ 48 मूल्य 25 / रूपया । 4-धर्मरत्नकरण्डक : श्रीवर्धमानसूरि, संपा. : पंन्यास मुनिचन्द्र विजयगणि । 1994, पृष्ठ 460 मूल्य 250 /- रूपया । 5- प्राचीन गुजरातना सांस्कृतिक इतिहासनी साधन सामग्री : मुनि श्री जिनविजय 1995, पृष्ठ 104 मूल्य 40 /- रूपया । 6- Concentration : by Virchand Raghavji Gandhi. वीरचन्द राघवजी गांधी द्वारा सन् 1900 में लंदन ( इंगलैंड ) में जैन धर्म में ध्यान विषय पर दिए व्याख्यान 1997 मूल्य 30 /- रूपया । 7- शोधखोलनी पगदंडी पर प्रो. हरिवल्लभ भायाणी : 1997, 150- रूपया 8- उसाणिरुद्धं : रामपाणिवाद; संपा. वी. एम. कुलकर्णी : 1996, 70 रूपया प्राकृत और जैनधर्म का अध्ययन ----- Jain Education International For Private & Personal Use Only 27 www.jainelibrary.org

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