Book Title: Prakrit aur Jain Dharm ka Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 12
________________ मिलकर ही कर सकती है। डॉ. पिशेल एवं अन्य जर्मन विद्वानों के प्राकृत भाषा सम्बन्धी ग्रन्थों तथा डॉ. पी. एल. वैद्या , डॉ. ए. एम. घाटगे, डॉ. सुकुमार सेन , डॉ. कत्रे आदि भारतीय विद्वानों की शोध-पूर्ण कृतियों के तलस्पर्शी अध्ययन के उपरान्त उपलब्ध प्राकृत साहित्य के आधार पर जो नया प्राकृत-व्याकरण ग्रन्थ तैयार होगा, वह 21 वीं सदी के अध्ययन को गति प्रदान करेगा । बहुत सम्भव है कि 21 वीं सदी में ही ऐसा ग्रन्थ तैयार हो पाये। प्राकृत व्याकरण के साथ-साथ तुलनात्मक प्राकृत शब्दकोश की भी नितान्त आवश्यकता है। पूना में डॉ. घाटगे के निर्देशन में यह शब्दकोश तैयार हो रहा है । किन्तु उसकी कार्य की गति के अनुसार प्रतीत होता है कि उस शब्दकोश के दर्शन 21 वीं सदी में ही हो सकेंगे। अर्थ की व्यवस्था होने पर भी विद्वानों का अभाव एक चिन्तनीय विषय है । प्राकृत अध्ययन के विकास के लिए प्राकृत के श्रमनिष्ठ एवं विश्रुत विद्वानों की जितनी आवश्यकता है , उतनी ही आवश्यकता प्राकृत-शिक्षण एवं शोध से जुड़ी हुई अथवा प्राकृत के नाम का उपयोग करने वाली संस्थाओं को जीवन्त होने की है। विश्वविद्यालयों में प्राकृत अध्ययन को बढ़ावा देने की दृष्टि से आठ-नौ स्वतन्त्र जैनालाजी एवं प्राकृत विभाग एवं चेयर्स स्थापित है। विगत कुछ वर्षों में कुछ नयी प्राकृत संस्थाएं भी उदित हुई हैं । उनमें राजस्थान प्राकृत अकादमी जयपुर, कुन्दकुन्द भारती नई दिल्ली , आगम अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान , उदयपुर , प्राकृत-अध्ययन प्रसार संस्थान , उदयपुर , अपभ्रंश एकेडेमी जयपुर , प्राकृत ज्ञानभारती एजुकेशन ट्रस्ट बैंगलोर एवं सेवा मंदिर , जोधपुर आदि प्रमुख हैं । 21 वीं सदी में इन प्राकृत संस्थाओं की संख्या में वृद्धि हो सकती है , क्योंकि प्रत्येक सक्रिय कार्यकर्ता अपनी एक अलग संस्था चाहता है और एक संस्था , दूसरी संस्था के साथ सहयोग करके चलना पसन्द नहीं करती। पूरे साधन किसी संस्था के पास नहीं है। कहीं अर्थ का अभाव है तो कहीं विद्वानों की कमी , शोधकर्ताओं की कमी । 21वीं सदी में प्राकृत अध्ययन का कार्य इन संस्थाओं में ताल-मेल हुए बिना नहीं चलेगा। प्राकृत-अपभ्रंश के विभिन्न कार्यो का विभाजन कर प्रत्येक संस्था अपना दायित्व स्वीकार करे तो प्राकृत-अध्ययन की प्रगति हो सकेगी । इसके लिए प्राकृत के विद्वानों की एक अखिल भारतीय परिषद भी गठित हुई थी , किन्तु एक बैठक के बाद अब उसमें कोई हलचल नहीं है। प्राकृत अध्ययन की गति-प्रगति को एक सूत्र में बाँधने के लिए एवं प्राकृत- अपभ्रंश के साहित्य से जन-सामान्य को परिचित कराने के लिए प्राकृत प्राकृत और जैनधर्म का अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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