Book Title: Prakrit aur Jain Dharm ka Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 15
________________ प्राकृत अध्ययन के इन प्रस्तावित कार्यों में संशोधन परिवर्द्धन स्वागत योग्य हैं । 21 वीं सदी के इन 21 कार्यो को यदि वर्तमान में स्थित संस्थाएं एवं विद्वान् एक-एक कार्य भी अपने जुम्मे ले लें तो न केवल उनका जीवन , अपितु उनकी सन्तति-परम्परा का जीवन भी धन्य हो जायेगा । जैन धर्म और अहिंसात्मक शोध : जैन तत्वज्ञान : __ जैनधर्म भारत का प्राचीन प्रमुख धर्म है । प्रारम्भ में श्रमणधर्म , अर्हत् धर्म एवं निर्ग्रन्थ धर्म के नाम से इसे जाना जाता था । जैनधर्म की परम्परा के महापुरुष समस्त प्राणियों में समान भाव रखते थे , समता की साधना करते थे । इसीलिए वे श्रमण कहलाये । श्रमण वह है , जिसका मन शुद्ध है , जो पापवृत्ति वाला नहीं है , तथा जो मनुष्यों एवं अन्य सभी प्राणियों को अपने समान समझता हुआ उन पर अहिंसा का भाव रखता है। जैनधर्म के महापुरुषों को आध्यात्मिक गुणों से युक्त होने के कारण ' अर्हत् ' कहा जाता है तथा धर्मरूपी तीर्थ के संस्थापक होने के कारण वे तीर्थंकर कहलाते हैं । उनके बाहर-भीतर किसी प्रकार का कोई परिग्रह नहीं होता , दुष्प्रवृत्ति नहीं होती , इसीलिए वे निर्गन्थ कहे जाते हैं । उन्होंने अपनी विषय-वासनाओं को जीत लिया है , इसीलिए ये जिन कहलाते हैं । ऐसे जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म को जैनधर्म कहा गया है। भारतीय चिन्तन–परम्परा में सर्वप्रथम अहिंसामय लोकधर्म का उद्घोष भगवान् ऋषभदेव ने किया था। उसी समतामय धर्म का प्रचार-प्रसार भगवान् पार्श्वनाथ तथा भगवान् महावीर आदि तीर्थकरों ने किया। महावीर द्वारा प्रतिपादित जैनधर्म लगभग ढाई हजार वर्षों से भारत में सर्वत्र व्याप्त है । इस धर्म की तत्व , ज्ञान और आचारगत मीमांसा से जैनधर्म की आचार संहिता का घनिष्ठ सम्बन्ध है। जैन आचार : पाश्चात्य दर्शनों में आचार संहिता का सम्बन्ध प्रायः नैतिक कर्तव्यों से है। सही और अच्छे आचरण का अध्ययन करना आचार-शास्त्र का मुख विषय है। भारतीय दार्शनिकों की दृष्टि से दर्शन , धर्म , आचार , नीति , अध्यात्म आदि शब्दों के भिन्न-भिन्न अर्थ हैं किन्तु सामान्यतया आचार संहिता का सम्बन्ध धार्मिक आचरण से ही अधिक है । कुछ दार्शनिक परम्परागत रीति-रिवाजों एवं धार्मिक क्रियाकाण्डों के परिपालन को ही धर्म कहते हैं । यही उनकी आचार-संहिता है ; किन्तु कुछ दार्शनिकों ने अहिंसा ; सत्य , संयम आदि विश्वजनीन मूल्यों को जीवन में उतारने/अपनाने को आचार माना है। कुछ ऐसे 14 प्राकृत और जैनधर्म का अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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