Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Hemchandrasuri Acharya
Publisher: Atmaram Jain Model School

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Page 5
________________ [ ६ ] जद ( त्यक्त), बोंदों (शरीर), श्रमिश्र (विस्मृत) इत्यादि । श्राचार्य हेमचन्द्र ने स्वप्रणीत प्राकृत व्याकरण में तत्सम और तद्भव शब्दों का ही प्रयोग किया है। यद्यपि देश्य शब्दों के रूप भी दिए हैं। तथापि उनका विवरण एवं रूपसिद्धि का उल्लेख नहीं जैसा ही है। देशीनाम-माला कोष में बने बनाए शब्द मिलते हैं। यद्यपि प्राकृतव्याकरण श्रनेकों हो उपलब्ध हैं। जैसे कि वररुचि का प्राकृतप्रकाश, त्रिविक्रमदेव की ससूत्रा प्राकृतव्याकरणवृत्ति, मार्कण्डेय का प्राकृत सर्वस्य चण्डका प्राकृतलक्षण, क्रमदीश्वर का संक्षिप्नमार, सिद्धराज का प्राकृतरूपावतार, लक्ष्मीघर की षड्भाषा-चन्द्रिका, रामतवागीश का प्राकृत कल्पतरु है । तथापि आजतक के प्रकाशित सभी प्राकृत व्याकरणों से सर्वोतम श्रीर महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हेमचन्द्र का प्राकृतव्याकरण है। सुबोध व्याकरण यदि कोई है तो वह सिद्ध हैमशब्दानुशासन ही है। इस पर स्वोपज्ञ लघुवृत्ति और वृहद वृत्ति भी उपलब्ध है। आठवें अध्याय के पहले पाद में क्रमशः 'अ' से लेकर 'ह' तक संस्कृत से प्राकृत शब्द बनाने की सभी विधियां बतलाई गई हैं। संधि, लिङ्ग-परिवर्तन प्रादि का विवरण है। द्वितीय पाद में भ्रागम, आदेश एवं शेष विधि का ज्ञान कराया गया है। तृतीयपाद में प्राकृत भाषा के अन्तर्गत सुबन्तविभक्ति, तिङन्तविभक्ति और कारक आदि विषयों को स्पष्ट किया गया है। चतुर्थपाद में शौरसेनी, - मागधी, पैशाची और अपभ्रंश इन चार भाषाओं के विशेष नियमों के संदर्भ में निर्देश किया गया है । प्राकृत भाषा में समराइच्चकहा, सुरसुंदरीचरियं आदि ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं। शौरसेनी भाषा में पट्खण्डागम, समयसार, प्रवचनसार, नियमसार श्रादि अनेक ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं । दिगम्बर जैन साहित्य प्रायः शौरसेनी भाषा में प्राप्त होते हैं। महाराष्ट्री प्राकृत भाषा में लीलावई पद्यात्मक ग्रन्थ भी उपलब्ध है । श्रर्धमागधी भाषा में पैंतालीस श्रागमशास्त्र निबद्ध हैं । गणधरों ने अर्धमागधी भाषा को ही सर्वोत्तम समझकर श्रागमशास्त्रों का प्रणयन किया है। शतावधानी श्री रत्नचन्द्र जी ने भी अर्धमाघी भाषा के सर्वापूर्ण व्याकरण की रचना की है। इस भाषा को ऋषिभाषिता भी कहते हैं और भाषें भी। ऋषियों के वचन प्रवचन जिस भाषा में संकलित किये गये हैं वह भार्ष मानी जाती है । श्राचार्य स्वयंभू ने राम चरित्र अपभ्रंश भाषा में लिखा है, उसका नाम "पउमचरिउ" है । पैशाची भाषा में व्यंजन अधिकांश वैसे ही बने रहते हैं। 'ण' बदलकर 'न' हो जाता है । प्रायः वर्ग के मध्यम वर्ण प्रथम वर के रूप बदल जाते हैं। जैसे- राजा का राचा, नगर का नकर प्रदेश का पतेश, देव का लेव । पिशाचों की भाषा को पैशाची भाषा बोलते हैं । अफगानिस्तान में यह भाषा बहुतायत से मिलती-जुलती है । किन्नौर प्रदेश में भी इस भाषा से मिलती-जुलती भाषा बोली जाती है । यह बड़े हर्ष की बात है कि प्राकृत भाषा के छात्र जिस सुबोध व्याकरण की चिरकाल से प्रतीक्षा में थे, माज वह उनके कर कमलों को प्रलंकृत कर रहा है। आचार्य हेमचन्द्रकृत प्राकृत व्याकरण पर संस्कृत भाषा में सरल एवं सुबोध बृहद् वृत्ति है और साथ ही जिस-जिस सूत्र से जो-जो कार्य होता है उस-उस सूत्र का संकेत करके रूपसिद्धि भी की हुई है। इतना ही नहीं, सूत्र और मूलवृत्ति का हिन्दी अनुवाद भी किया हुआ है, तथा साथ ही जिस रूप की सिद्धि की गई है उस का अर्थ भी हिन्दी भाषा में निर्दिष्ट है। इस के दो भाग हैं। पहला और दूसरा । पहले भाग में तीन पाद और दूसरे भाग में केवल चौथा पाद है। दोनों भागों में प्राकृत व्याकरण की इति श्री हो जाती है । यह व्याकरण

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