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१६. मूल धातु
आ जाने पर लिंग-सूचक प्रत्यय लगाकर नाम के रूप में अलग से दिया गया वही शब्द, जैसे- आढा (आढा) हक्क (हक्का), अभिक्कम ( अभिक्कम) समीह (समीहा), सलाह ( सलाहा )
१७. 'धातु या नाम शब्द में मात्र इअ, इय (इत ) प्रत्यय लगाकर बनाये गये कर्मणिभूतकृदन्त या विशेषण, जैसे--भज्ज (भज्जिय), पाव (पाविय) अंकुर (अंकुरिय) विसेस (विसेसिय), भी ( भीइय), कंडू (कंडूइय), मा ( माइअ ), पुंज (पुंजिअ ), संकेअ (संकेइअ ), संजोअ (संजोइअ ), अंधयार (अंधयारिय), अंध (अंधिय ) जैसे - 9
१८. धातु में 'ण' 'णा', या 'जया' जोड़कर बनाये गये नाम शब्द,
- पुच्छ
(पुच्छण, पुच्छणया), समप्प (समप्पण), सिणा (सिणाण), विसोह ( विसोहया) संथव (संथवणा), अभिवंद (अभिवंदणा)
१९. शब्द के प्रारम्भ में उपसर्ग 'अ' जोड़कर बनाये गये मात्र निषेधवाची शब्द, जैसे -- कप्प ( अकप्प ), जयणा ( अजयणा), खज्ज (अखज्ज)
२०. शब्द के प्रारंभ में 'सु' उपसर्ग जोड़कर निम्नार्थबोधक शब्द,
(१) सुन्दर, अच्छा, भला (२) अच्छी तरह, सुखसे, (३) शुभ प्रशस्त, उत्तम (४) अति, अत्यन्त, अतिशय बहुत ( ५ ) दृढ और (६) बिलकुल, जैसे(१) सुकुसुम, सुतवस्ति, सुपहाय (२) सुचरिय, सुलभ (३) सुपह, सुजाइ, सुगुरु (४) सुगरिट्ठ, सुपसन्न, सुदुक्कर, सुदिप्प (५) सुनिच्छय और (६) सिंक, सुविण ।
२१. मध्यवर्ती अ, आ, इ और उ के स्थान पर य, या, यि और यु परस्पर क्रमशः समझ लेने चाहिए ।
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