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प्राकृत-हिन्दी कोश का सम्पादन 'पाइय सद्द महण्णवो' की इस किञ्चित् परिवर्तित आवृत्ति में अपनाये गये नियम ।
यदि मूल शब्दों के वर्गों अथवा अर्थ में किसी प्रकार का भेद, परिवर्तन या विशेषता नहीं हो तो निम्न प्रकार के शब्द एवं उनके रूप निकाल दिये गये हैं।
१. प्राकृत ग्रन्थों में से उद्धत अवतरण २. अर्थों के साथ दिये गये संख्यावाची अंक ३. भेद न रखने वाले एक से अधिक अर्थ, जैसे :_मस्तक, सिर; हस्त, हाथ; हस्ति, हाथी ४. अनावश्यक वर्णनात्मक विस्तार ५. सादृश्यता बतलाते हुए आधुनिक भाषा के शब्द ६. प्राकृत शब्द के सामने कोष्ठक में दिया गया संस्कृत शब्द यदि वह तत्सम,
है, जैसे-उत्ताल, काम, ताल, वायस, समूह ७. 'आ' या 'ई' प्रत्यय लगाकर बनाया गया स्त्रीलिंगी शब्द यदि उसका अन्य
लिंगी शब्द आ गया हो, जैसे-पुत्त (पुत्ती), अणुमासण (अणुमासणा) अमर
(अमरी) ८. कभी-कभी आवश्यकतानुसार ऐसे शब्द जिनमें 'न' या 'न्न' हो जबकि 'ण'
या 'ण' वाला वही शब्द आ गया हो, जैसे-मणुस्स (मनुस्स), पुण्ण (पुन्न) ९. शब्द में तृतीया या पंचमी विभक्ति लगाकर बनाये गये अव्यय, जैसे-अइर
(अइरेण), अग्ग (अग्गओ) १०. मूल शब्द आ जाने पर उसमें स्वार्थ 'अ', 'य' अथवा 'ग' लगे हुए शब्द,
जैसे-अगुरु (अगुरुअ), अर (अरग), अंगुलीय (अंगुलीयय), भद्द (भद्दअ) ११. इ (इन्) प्रत्यय लगाकर बनाये गये शब्द जो धारण करने, प्रवृत्ति करने या ___स्वामित्व के अर्थ वाले हो, जैसे-अणुभव (अणुभाव) अक्खा (अक्खाइ),
संसय (संसइ) १२. 'इर' प्रत्यय लगाकर बनाये गये शीलवाची शब्द, जैसे-अणुगम (अणुगमिर)
मुअ (मुइर), भी (भोइर) १३. 'इल्ल, इल्लग, इल्लय, उल्ल, एल्ल, एल्लग' प्रत्यय लगाकर बनाये गये
स्वार्थ शब्द, जैसे--पुत्त (पुत्तिल्ल, पुत्तुल्ल), बाहिर (बाहिरिल्ल), सच्च
(सच्चिलय), भंड (भंडुल्ल), अंध (अंधिल्लग, अंधेल्लग) हिअअ (हअउल्ल) १४. मूल धातु के साथ दिये गये उसके अनेक कालवाची एवं कृदन्त रूप १५. अलग-अलग स्थलों पर आने वाले कृदन्त रूप जिनका मूल धातु आ
गया हो।
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