________________
१८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
अगुलु-अग्गि अगुलु देखो अगुरु।
दिया जाता है वह घर । अग्ग न [अग्रव] प्रकर्ष ।
अग्गल वि [दे] अधिक । अग्ग पुन [दे] परिहास । वर्णन ।
अग्गवेअ पुं [दे] नदी का पूर । .अग्ग न [अग्र] आगे का भाग, ऊपर का | अग्गह पु [आग्रह] हठ, अभिनिवेश ।
भाग । पूर्वभाग । परिमाण । वि. प्रधान, अग्गहण न [अग्रहण] अज्ञान । नहीं लेना । श्रेष्ठ । अग्रवर्ती । प्रथम । क्वंध पु[स्कन्ध] | अग्गहण न [दे. अग्रहण] अनादर । सैन्य का अग्र भाग । गामिग वि [°गामिक] | अग्गहणिया स्त्री [दे] गर्भाधान के बाद किया अग्रगामी । °ज देखो °य । °जम्म [जन्मन् | __ जाता एक संस्कार और उसके उपलक्ष्य में देखो य । °जाय [°जात] देखो °य। मनाया जाता उत्सव । °जीहा स्त्री [जिह्वा] जीभ का अग्र-भाग । | अग्गहिअ वि [दे] निर्मित । स्वीकृत । °णिय, °णी वि [°णी] नायक । °तावस | अग्गाणी वि [अग्रणी] मुख्य । पुं [तापस] ऋषि-विशेष का नाम । °द्ध न अग्गारण न [उद्गारण] वमन । [T] पूर्वार्ध । °पिंड पु [°पिण्ड] एक | अग्गाह वि [अगाध] अगाध । प्रकार का भिक्षान्न । °पहारि वि ['प्रहा- | अग्गाहार पु [अग्राधार] ग्राम-विशेष का रिन] पहले प्रहार करनेवाला । °बीय वि नाम । [°बीज] जिसमेंबीजपहले ही उत्पन्न हो जाता | अग्गाहार पु[दे. अग्राहार] उच्च जीविका । है या जिसकी उत्पत्ति में उसका अग्रभाग ही
अग्गि पुं [अग्नि] एक नरक-स्थान । कारण होता है; जैसे आम, कोरंटक आदि
°हुत्त देखो °होत्त। अग्गि पु वनस्पति । °मणि पु [°मणि] मुख्य, श्रेष्ठ,
स्त्री [अग्नि] आग। कृत्तिका नक्षत्र का शिरोमणि। °महिसी स्त्री [°महिषी] पट
अधिष्ठायक देव । लोकान्तिक देव-विशेष । रानी । °य वि [°ज] आगे उत्पन्न होने
आरिआ स्त्री [°कारिका] होम । °उत्त वाला । पुं ब्राह्मण । बड़ा भाई। स्त्री. बड़ी
पु[पुत्र] ऐरवत क्षेत्र के एक तीर्थंकर का बहन । °लोग पु ["लोक] मुक्तिस्थान । हत्थ पु [°हस्त] हाथ का अग्र-भाग । हाथ
नाम । °कुमार पु भवनपति देवों को एक
अवान्तर जाति । °कोण पु पूर्व और दक्षिण का अवलम्बन । अंगुली।
के बीच की दिशा । °जस पु [ यशस] देवअग्ग न [अग्र] प्रभूत, बहु । उपकार । °भाव
विशेष । ज्जोय [°द्योत] भगवान् महान धनिष्ठा-नक्षत्र का गोत्र । °माहिसी देखो
वीर का पूर्वीय बीसवें ब्राह्मण-जन्म का नाम । °महिसी।
ट्ठ वि [°स्थ] आग में रहा हुआ। "टोम अग्ग वि [अग्र्य] श्रेष्ठ । प्रधान ।
पु [°ष्टोम] यज्ञ-विशेष । °थंभणी स्त्री अग्गंथ वि [अग्रन्थ] धनरहित । पु जैन |
[स्तम्भनी] आग की शक्ति को रोकनेवाली साधु ।
एक विद्या । °दत्त पु भगवान् पार्श्वनाथ के अग्गक्खंध पु [दे] रणभूमि का अग्रभाग ।।
समकालीन ऐरवत क्षेत्र के एक तीर्थंकर देव । अग्गल न [अर्गल] किवाड़ बन्द करने की | भद्रबाहु स्वामी का एक शिष्य । दाण पु लकड़ी। पु. एक महाग्रह । °पासय पु ["दान]सातवें वासुदेव के पिता का नाम । ['पाशक] जिसमें आगल दिया जाता है वह । °देव पु देवविशेष । भूइ पुं [भूति] भगवान् स्थान । पासाय पु [°प्रासाद] जहाँ आगल ! महावीर का द्वितीय गणधर । भगवान् महावीर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org