Book Title: Prakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ आरम्भिक 'प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ' पाठकों के हाथों में समर्पित करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है। प्राकृत भाषा भारतीय आर्य भाषा परिवार की एक सुसमृद्ध लोकभाषा रही है। भारतीय लोक जीवन के बहआयामी पक्ष, दार्शनिक एवं आध्यात्मिक परम्पराएँ प्राकृत साहित्य में निहित हैं। महावीर युग और उसके बाद विभिन्न प्राकृतों का विकास हुआ, जिनमें से तीन प्रकार की प्राकृतों का नाम साहित्य-क्षेत्र में गौरव के साथ लिया जाता है। वे हैंह्न अर्धमागधी, शौरसेनी और महाराष्ट्री। जैन आगम साहित्य एवं काव्य-साहित्य में इन्हीं तीन प्राकृतों का भारत के सांस्कृतिक इतिहास में गौरवपूर्ण स्थान है, अत: इनका सीखनासिखाना बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। प्राकृत भाषा के सीखने-समझने को ध्यान में रखकर 'प्राकृत रचना सौरभ', 'प्रौढ़ प्राकृत रचना सौरभ', 'प्राकृत अभ्यास सौरभ', आदि पुस्तकों का प्रकाशन किया जा चुका है। इसी क्रम में प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ' तैयार की गई है। इसमें प्राकृत के विभिन्न ग्रन्थों से पद्यांशों व गद्यांशों का चयन किया गया है। उनके हिन्दी अनुवाद, व्याकरणिक विश्लेषण एवं शब्दार्थ प्रस्तुत किए गए हैं। इससे प्राकृत भाषा को सीखने के साथ-साथ काव्यों का रसास्वादन भी किया जा सकेगा। दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी द्वारा संचालित 'जैनविद्या संस्थान' के अन्तर्गत 'अपभ्रंश साहित्य अकादमी' की स्थापना सन् 1988 में की गई। वर्तमान में प्राकृत अपभ्रंश का अध्यापन पत्राचार के माध्यम से किया जाता है। आशा है 'प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ' प्राकृत-जिज्ञासुओं के लिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 384