Book Title: Prakrit Gadya Padya Saurabh Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 6
________________ आरम्भिक 'प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 1' का द्वितीय संस्करण पाठकों के हाथों में समर्पित करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है। पाठकों ने प्रथम संस्करण का भरपूर उपयोग किया, इसके लिए हम पाठकों के आभारी हैं। प्राकृत भाषा भारतीय आर्य भाषा परिवार की एक सुसमृद्ध लोकभाषा रही है। भारतीय लोक जीवन के बहुआयामी पक्ष, दार्शनिक एवं आध्यात्मिक परम्पराएँ प्राकृत साहित्य में निहित हैं। महावीर और बुद्ध ने जनभाषा प्राकृत में उपदेश देकर सामान्यजनों के लिए विकास का मार्ग प्रशस्त किया है। मौर्यो के काल में तो प्राकृत राजभाषा थी ही, किन्तु उसका यह क्रम सातवाहनों के काल में भी जारी रहा। दक्षिण की भाषाएँ - तेलगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम प्राकृत से अधिक मेल खाती हैं। कालिदास के नाटकों में प्राकृत भाषा का अत्यधिक उपयोग इस बात का प्रमाण है कि उनके समय में प्राकृत बोलनेवालों की संख्या अधिक थी । प्राकृत भाषा को सीखने-समझने को ध्यान में रखकर 'प्राकृत रचना सौरभ', 'प्राकृत अभ्यास सौरभ', प्रौढ़ प्राकृत रचना सौरभ' आदि पुस्तकों का प्रकाशन किया जा चुका है। इसी क्रम में 'प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ' तैयार की गई थी। अब यह उसका द्वितीय संस्करण है। इसमें पूर्व की भाँति प्राकृत के गद्यांशों व पद्यांशों का चयन किया गया है। उनके हिन्दी अनुवाद, व्याकरणिक विश्लेषण एवं शब्दार्थ प्रस्तुत किए गए हैं। काव्यों के भावानुवाद के स्थान पर व्याकरणात्मक अनुवाद करने की पद्धति आत्मसात की गई है। इससे काव्यों के समीचीन अर्थ के साथ प्राकृत काव्यों का रसास्वादन किया जा सकेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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