Book Title: Prachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 56
________________ मध्य प्रान्त। [२७ लिखा है । अरबके विद्वान अलबेरुनीने इसे ११ वी १२ वीं शताब्दीमें संडवाबो लिखा है . तथा बताया है कि यह जैन पूजाका महान स्थान था। यह १५१६में मालवाकी राज्यधानी थी इसे. जसवंतराव होलकरने सन् १८०२ में गला डाला फिर सन् १८१८ में इसे तांतिगाटोपनि जलाया। जैन पायाण चार सरोवरों में मिलते हैंसमन्धरकुंड, पद्मकुंड, भीमकुंड और सूर्यकुंड । सबसे बढ़िया जैन मुत्तिय पुराने खंडवाके किलेमें पद्मकुंड पर मिलती हैं (कनिधम जिल्द ९ १० ११३) (२) घरहानपुर-यह १६३५ में बहुत - बड़ा नगर था Tavernier टेवरनियर यात्री सूरतसे आगरा जाते हुए सन् १६४१ और १६५८में इस नगरमें होकर गया था। वह लिखता है "In all the province an enormous quantity of very transparent muslins are made, which are exported to Persia, Turkey, Muscovic, Poland, Arabin, Grand Cairo & other placos, some are dyed with various colours and with flowers." भावार्थ-सब प्रांतभरमें बहुत महीन मलमले बहुत अधिक बनती हैं जो यहांसे फारस, टर्की, मस्को, पोलैंड, अरव, महानकैरो और दूसरे स्थानोंपर भेजी जाती हैं । कुछमें नाना प्रकारके रङ्ग दिये जाते हैं कुछमें फूल बनाए जाते हैं। (३) असीरगढ़ किला-तहसील वरहानपुर, खण्डवासे २९ व वरहानपुरसे १४ मील है । चांदनी रेलवे स्टेशनसे ७ मील । यह एक पहाड़ी है जो ८५० फुट ऊँची है । यहां कई राजपूत

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