Book Title: Prachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 176
________________ १७६ ] प्राचीन जैन स्मारक। . तेजपाल अनहिलवाड़ पाटनके पौड़वाड़ महाजन अश्वराज (आसराज) के पुत्र थे । धोलकाके सोलंकी राणा (विधेलवंशी ) वीरधवलके मंत्री थे । तेजपालने अपने पुत्र लूणसिंह व स्त्री अनुपम देवी के हितार्थ करोड़ों रुपये लगाकर वि० सं० १२८७ में यह मंदिर बनवाया। इन मंदिरोंकी छतोंमें जैन कथाओंके भी चित्र हैं। इस नेमनाथ मंदिरोंमें दो बड़े शिलालेख हैं । एक ७४ श्लोकोंका काव्य धोलकाके राणा वीरधवलके पुरोहित तथा कीर्तिकौमदी, सुखोत्सव आदि काव्योंके कर्ता कवि सोमेश्वर रचित है। इसमें वस्तुपाल तेजपालके देशका वर्णन, अर्णो राजासे वीरधवल तक वघेल राजाओंकी नामावली, आबूके परमार राजाओंका हाल व मंदिरकी प्रशंसा है। दूसरा लेख गधमें मंदिरके वार्षिकोत्सव आदिक वर्णनमें है। इसमें अनेक ग्रामोंके महाननोंके नाम हैं जो प्रतिवर्ष उत्सव करते । थे। ५२ जिनालय और हैं। यहां शिल्पके नमूने दो सुन्दर आले हैं इनको देवराणी निठाणीके आले कहते हैं । उनको तेजपालने अपनी दूसरी स्त्री सुहड़ादेवीके श्रेयके लिये बनवाया था। यह सुहड़ादेवी पाटनके मोड़ महाजन ठाकुर (ठक्कुर) जाल्हणके पुत्र ठाकुर आसाकी पुत्री थी । ऐसा उनपर खुदे हुए लेखोंसे प्रगट , है-उस समय गुजरातमें पोड़बाड़ और मोढ़ जातिके महाजनोंमें परस्पर विवाह होता था। दोनों आलोंपर सहश नकल है। एककी नकल इस भांति है:... “ ॐ संवत १२९७ वर्षे वैशाख सुदी १४ गुरौ प्राग्वाट ज्ञातीय चंडप्रचंड प्रसाद महं (महंत) श्री सोमान्वये महं श्री असरान

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