Book Title: Prachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 177
________________ राजपूताना । [ १७७ सुतमहं श्री तेजःपालेन श्रीमत्पत्तन वास्तव्य मोढ़ जातीय ठ० 1 जाल्हण सुतं ठ० आससुतायाः ठकुराज्ञी संतोषाकुक्षि संभूताया. महं श्री तेजःपाल द्वितीय भार्या मह श्री सुहड़ादेव्याः श्रेयोर्थं ..... ( आगेका भाग टूट गया है) । इस मंदिर की हस्तिशाला में संगमर्मरकी १० हथनियां हैं जिनपर १० सवारों की मूर्तियां थीं, अब नहीं रही हैं। इस संबंधी वंशवृक्ष नीचे प्रकार है चंडप 1 चंडीप्रसाद सोमसिंह 1 अश्वराज 1 1 लूणिक मल्लदेव वस्तुपाल L " जैत्रसिंह तेजःपाल } लवणसिंह इन हथनियोंके पीछेकी पूर्व भीतिमें १० आले हैं उनमें इन १० पुरुषोंकी स्त्रियोंकी मूर्तियें पत्थर की खड़ी हैं, हाथोंमें पुष्पमाला हैं । वस्तुपालके सिरपर पाषाणका छत्र है । मूर्तिके नीचे प्रत्येक पुरुष व स्त्रीका नाम है। पहले आलेमें चार मूर्तियां खड़ी हैं वे आचार्य उदयसेन, विजयसेन हैं व तीसरी मूर्ति चंडप व चौथी चंडपकी स्त्री चामल देवी की है। उदयसेन विजयसेनके शिष्य. थे। यह नागेन्द्रगच्छंके साधु व वस्तुपालके कुल गुरु थे। मंदिरजीकी ,

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