Book Title: Prachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 183
________________ राजपूताना। [१६१ शिलालेख । सिहोर राज्य-(१) गटयाली-एक जैन मंदिरके स्तम्भमेंधनियाविहार नामके जैन मंदिरको मामावती नामका खेत नोनाने सं० १०८५में दान किया । (२) नांदिया-जैन मंदिरके स्तम्भपर इस स्तम्भको सं० १२९८में भीमने अपने पिता रौरकमणके हितार्थ स्थापित किया जो रौर पुनसिंहके पुत्र थे। सन् १९१२-१३। झालरापाटन शहर-सात सलाकी पहाड़ीपर स्तम्भ हैं (१) समाधि स्थान सं० १०६६ नेमिदेवाचार्य और बलदेवाचार्य । (२) सं० ११६६ समाधि श्रेष्ठी पापा। (३) सं० ११७० समाधि श्रेष्ठी सांधला, (४) सं० १२९९ मूलसंघ देवसंघ (लेख अस्पष्ट)। राज्य गंगधार-जैन मूर्तियोंपर नीचेके लेख हैं। (१) सं० १३३० कुम्भके पुत्र सा कादुआ द्वारा । (२) सं० १३५२ सा आहदके पुत्र देदा द्वारा । (३) सं० १५१२-श्री अभिनंदन मूर्ति भंडारी गना द्वारा। (४) सं० १९२४ श्रीश्रेयांसमूर्ति जयताके पुत्र श्रावक मंडन,, सन् १९१४ भरतपुर वयाना यादव राना विजयपाल करौलीका एक स्तंभ मिला है । इसपर काम्पकगच्छके जैन श्वेतांवर आचार्य विष्णुसूरि और माहेश्वरसूरीके नाम हैं । सं० ११०० में माहेश्वरसूरीकी समाधि हुई। मेवाड-अहार-जैन मंदिरके आलेमें-जिसको नावन नेवरान कहते हैं-गुहिलराज नरवाहाके समयका अनुमा० . १० और १०३४ का लेख है।

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