Book Title: Prachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 184
________________ १९६] प्राचीन जैन -स्मारक। (6) खेड़ा-जैन मंदिरकी एक पाषाण मूर्तिपर सं० १९३१ . मूलसंघ सरस्वतीगच्छ महाराज कीर्तिसिंहदेव । (७) नौगमा-श्री अनंतनाथके दि जैन मंदिरमें सं. १९४५ 'साहिलवाल जातिके साहवलिय, मूलसंघ कुंद० भ० पदमनंदिदेवके शिष्य भ० शुभचंद्रदेवके शिष्य मंडलाचार्य धर्मकीर्ति द्वारा । (८) नौगमा-वहीं एक पापाण मूर्तिपर सं० १९४८ भ० जिनचंद्र मूलसंघ, जीवराज पापड़ीवाल । . (९) लक्ष्मणगढ़-जैन मंदिरमें पीतलकी मूर्ति पार्श्वनाथ सं० १९९५ साहसंग्राम भा० कनकारदे पुत्र साह लहुमा स्त्री पूंगीने, मूलसंघ भ० शुभचंद्रदेव द्वारा । (१०) अलवर शहर-एक पाषाण जो अब एक ठाकुरके घरमें है पहले जैन मंदिरकी भीतपर था । यह लिखता है कि अलवरमें श्री पार्श्वनाथका जैन मंदिर योगिनीपुर (दिहली )के 'हीरानंदने जो सं० १६८५में अंगलपुर ( आगरा ) में रहते थे, ओसवालवंशीय बृहत् खरतरगच्छके जिनचंद्रसूरिके शिष्य वस्वकरंगकलश द्वारा बनवाया। . (११) मौजीपुर-श्वे. जैन मंदिरमें सीतलनाथकी पाषाण मूर्तिपर-सं० १६९४ हाड़ोयावासी हूमड़ जाति उत्तरेश्वर गोत्र मिहता साधारणके पुत्र लाला और गलाने, मूलसंघ कुंद० सर० गच्छ बलात्कारगण भट्टारक चांदिभूषण गुरुद्वारा। (१२) लक्ष्मणगढ़-दि० जैन मंदिर-पाषाण मूर्ति सं० १६६ खंडेलवाल साह गोत्र छाजूके पुत्र सारणमलके पुत्र गूजरने मूलसंघ नंद्यानाय.भा चंद्रकीर्ति द्वारा ।

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