Book Title: Prachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 180
________________ १८० प्राचीन जैन स्मारक। यहांके मुख्य स्थान (१) आम्बेर-जैपुरसे उत्तरपूर्व ७ मील। यह बहुत प्राचीन नगह है। यहां सन् ९५४का लेख मिला है। कई जैन मंदिर हैं। (२) वैराट-ता. वैराट-जैपुरसे उत्तरपूर्व ४२ मील। बहुत प्राचीन स्थान है । यहां महारान अशोक (सन् ई०से २५० वर्ष पूर्व) के दो शिलालेख हैं। नगरके १ मीलकी हद्दमें बहुतसे संवेके सिक्के मिले हैं। यहां पांच पांडव अपने परदेश भ्रमणके समय ठहरे थे। यह प्राचीन मत्स्य प्रान्तकी राज्यधानी थी। चीनी यात्री हुइनसांग यहां सन् ६१४ में आया था। यहां एक पार्श्वनाथका दि० जैन मंदिर है। यहां एक मूर्तिपर शाका १५०९ हीरविजय लिखा है। (६) चाटस् या चाकसू-चादसू प्टे० से २ मील प्राचीन नगर है । सन् ई० से १७ वर्ष पहले प्रसिद्ध विक्रमादित्यका स्थान था। यहां तांबेकी भीत थी। इससे इसको ताम्बा नगरी कहते हैं। यहां सेसोदिया जातिके राजा राज्य करते थे। (४) झूझनू-शेखावाटीमें, जैपुरसे उत्तर पश्चिम ९० मील ! यहां १०.०० वर्षका प्राचीन जैन मंदिर है । (५) खडेला-निजामत तोरावाटीमें जयपुरसे उत्तर पश्चिम ५५ मील। स० नोट-यह खंडेलवाल जातिकी उत्पत्तिका स्थान है। (६) नरैना-निजामत सांभर । यहां दादूपन्थका स्थापक दादू अकबर बादशाहके समयमें रहता था। यह सन् १६०३में मरा है। इसका मरण स्थान यहां एक झीलके पास है । इसकी पुस्तकका नाम वाणी है।

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