Book Title: Prachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 153
________________ प्राचीन जैन स्मारक। पहलेका वसा हुआ था । यह कहा जाता है कि पोरवाल महाजनोंका नाम इसी स्थानसे प्रसिद्ध हुआ है। . (१२) दिलवाड़ा-दिलवाड़ा प्टेटमें उदयपुर शहरसे उत्तर १४ मील | इस नगरको मेवाड़के प्राचीन राजाओंमेंसे एक भोगादित्यके पुत्र देवादित्यने बसाया था। यहां तीन जैन मंदिर १६ वीं शताव्दीके हैं जिनको "जैनकी वस्सी" कहते हैं। पहला मंदिर एक बहुत बढ़िया इमारत है यह श्री पार्श्वनाथनीका है । मध्यमें , चड़ा मंडप है, एक एक मंडप हर दो तरफ है और एक वेदीका कमरा है जिसमें कुछ दूसरे पुराने मकानोंके पापण लगे हैं और कई बहुत प्राचीन मूर्तियें हैं । उसी हातेमें एक छोटा मंदिर है जिसमें १२६ मूर्तियां हैं जो कुछ वर्ष हुए निकटमें खुदाईसे मिली थीं। दूसग मंदिर श्री ऋषभदेवनीका है जिसमें एक बड़ा मंडप है । इसमें प्राचीन भाग उत्तरमें वेदीका कमरा है जिसकी खुदाई बहुत सुन्दर है। तीसरा मंदिर भी श्री ऋपभदेवका छोटा है। (१३) मांडलगढ़-जि० उदयपुर पहाड़ीपर एक मंदिर श्री ऋपभदेवनीका है । वालेश्वर मंदिरके हारपर ब हारके पास दो खंभोंकी चौखटपर १० जिन मूर्ति दैठे आसन हैं। मंडपमें दक्षिण तरफ एक जैन मूर्ति चौखटपर खुदी है। (१४) करेड़-उदयपुरसे पूर्न ४१ मील । यह उदयपुर लाइ- . नमें पला स्टेशन है । ग्रामके बाहर एक बड़ा संगमरवान मंदिर श्री पार्श्वनाथ स्वामीका है. इसके चारों तरफ बड़ी जीयाल है। मूर्ति श्रीपार्श्व ० का सं० १६५६ है, यहां सुदो पौषमें मेला होता है। - म अनेकसी मंदिग्के - एक मजद बनव दी।

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