Book Title: Prachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 155
________________ मंदनेश्वरका It showd temple is Jain मंदिर सन् १०८० में अपने पिताकी स्मृतिमें बनवाया विजयराज सन् ११०० में जीवित था ऐसा लेख कहता है। (२) कालिंजर-चांसवाड़ासे दक्षिण पश्चिम १७ मील। यहां . सुन्दर जैन मंदिरके ध्वंश हैं जिनमें बहुतसे शिपर है व कई कमरे हैं जिनमें जैन मूर्तियां हैं। इसमें खुदाई बढ़िया है। यहां तीन . शिलालेख हैं जो पढ़े नहीं गए। यह जैन व्यापारियोंका मुख्य व्यापारका केन्द्र था। मराम लुटेरोंने इसे नष्ट किया व व्यापारियोंको भगा दिया। (See Heber Journey uppr provinces of India Vol. II 1828.) (३) परतावगढ़ राज्य । चौहद्दी-उत्तर पश्चिममें उदयपुरपश्चिम, दक्षिण-बांसवाड़ा, दक्षिण रतलाम, पूर्व जावरा, मंदसोर, नीमच। यहां ८८६ वर्गमील स्थान है। वीरपुर-सुहागपुरके पास । यहां एक जैन मंदिर है जो . २००० वर्षका पुराना कहा जाता है। प्राचीन मंदिर परतापगढ़से दक्षिण २ मील वीरडियापर · तथा नीनारमें है। जांच नहीं हुई। परतावगढ़से ७॥ मील पश्चिम देवलिया या देवगढ़में २ जैन मंदिर हैं। परतावगढ़ शहरमें ११ जैन मंदिर हैं व २७ सैकड़ा जैनी । हैं। कुल राज्यमें ९ सैकड़ा जैनी हैं जिनमें १६ सैकड़ा दिगम्बरी ३७ सैंकड़ा क्षे० मंदिर मागी व ७ सैकड़ा हूंढिया है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185