Book Title: Prachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 171
________________ राजपूताना। [१७१ लेख है सं० १९१९ प्राग्वाट (पोडवाड ) वनिया वीरवातकका ( वीरवाड़ा यहांसे १ मील)। (१०) बलदा-वामनवारजीसे ६ मील | यहां १४वीं वा १५वीं शताब्दीका जैन मंदिर है। मुख्य वेदीमें श्री महावीरस्वामीकी मूर्ति है मं० १६९७ है। मंदिर मूर्तिसे प्राचीन है। द्वारके आलेपर एक लेख है सं० १४८३ जेठ सुदी ७ गुणभद्रने अपने बुजुर्ग बलदेवग्मे बनाए हुए मंदिरका जीर्णोद्धार किया । (११) कलार-सिरोहीसे उत्तरपूर्व ६ मील । यहां आदिनाथका मंदिर १५वीं शताब्दीका है १४ स्वप्न बने हैं। महाराणी सोई हुई हैं। लिखा है-महाराणीउसालादेवी चतुर्दशस्वप्नानि पश्यति।' (१२) पालदी-सिरोहीसे उत्तरपूर्व १० मील | यहां सात स्तम्भोंपर लेख हैं सं० १२४८ आषाढ़ वदी १ शुक्र व दीवालके वाहर एक पाषाणपर है सं० १२४९ माघ सुदी १० गुरु महाराज श्री केल्हणदेव और उसके पुत्र जयलसिंहदेव । (१३) वागिन-पालोदीसे १ मील | २ जैन मंदिर श्री आदिनाथजीके हैं। एक बड़ा १२ या १३ शताब्दीका है । दो खंभोंपर लेख सं० १२६४के हैं। मुख्य मंदिरके द्वारपर है सं०. १३५९ सामंतसिंहदेवके राज्यमें वाघसेनका दान हुआ। (१४) उथमन-पालोदीके उत्तरपूर्व १॥ मील | यहां जैन मंदिर है, जिसमें १ सुन्दर संगमर्मरकी मूर्ति है। यहां आलेमें एक लेख मं० १२५१का है कि धनासवके पुत्र देवधरने अपनी स्त्री धारामतीके द्वारा श्री पार्श्वनाथके मंदिरको दान कराया।

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