Book Title: Prachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 134
________________ मध्य भारत। [१२३ जिसके अंश कलकत्ता म्यूजियममें गए हैं । यहां सांची स्तूपके समान था । इसके एकद्वारपर सन ई०से पहली या दूसरी शताब्दी पहलेका लेख संग वंशका था । दूसरे मुख्य स्थान लालपहाड़ पर हैं जो इस स्तूपके पास एक पहाड़ी है । यहां बड़ी गुफा है व सन् ११५८ का कलचूरी वंशका शिला लेख है । संकरगढ़ और खोली पर भी कई उपयोगी लेख सन् ४७५ से १५४ तकके' पाए गए हैं । भूमारा, मझगावां, करीतलाई व पटैनी देवी पर भी स्मारक हैं। पटैनीदेवी पर चौथी या पांचमी शताब्दीका गुप्त वंशीय समयका एक छोटा सुरक्षित मंदिर है इसमें १०वीं या ११ वीं शताब्दीके कुछ जैन स्मारक हैं। (देखोवर्णन जिला जवलपुर) पश्चिम भाग अर्कीलाजिकल सरवे रिपोर्ट सन् १९२०में विशेष कथन यह है कि पटैनीदेवीके मंदिरके ऊपर तीन आले हैं। हरएकमें जैन मूर्तियां हैं । भीतर मंदिरमें देवीकी मूर्ति और पीछे पाषाणमें १२ वीं शताब्दीकी जैन मूर्तियां अंकित हैं। मुख्य मूर्तिके हर तरफ नौ हैं। पहली लाइनमें मध्यमें श्री नेमिनाथ हैं। इसके हरतरफ २ खड़े आसन जिन हैं अन्तमें एक जिन बैठे हुए आलेमें हैं । वाऐंसे दाहनेको जो लाइन है उसमें ये नाम देवियोंके हैं (१) यहुरूपिणी (२) चामुंड (३) सरस्वती (४) पद्मावती (५) विजया (६) अपराजिता (७) महामनुसी (८) अनंतमती (९) गांधारी (१०) मानुसी (११) ज्वालामालिनी (१२) भानुसी (१३) वजसंकला (१४) भानुजा (१९) जया (१६) अनन्तमती (१७) वैरोता (१८) गौरी (१९) महाकाली (२०) काली (२१) बुधदाघी (२२) प्रजापति (२३) वाहिनी ।,

Loading...

Page Navigation
1 ... 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185