Book Title: Prachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 142
________________ राजपूताना। ॥ १३३ ___ Archeolgy progross report of W. India 1905 में विशेष वर्णन यह है कि मध्य मंदिरके सामने दो चौकोर स्तम्भ हैं जिनमें जैनाचार्योंके नाम हैं । तथा खास मंदिरके सामने एक खंभेवाला कमरा है जिसको नौचौकी कहते हैं । इसीके उत्तर चट्टानोंमें ऊपर कहे दो लेख हैं। पहला लेख ११ फुट छ इंच व ३ फुट ६ इंच है । दूसरा १५ फुट और ५ फुट है। लोला महाजनने या तो पार्श्वनाथका मंदिर बनवाया हो या जीर्णोद्धार किया हो । इसने सात छोटे मंदिर और वनवाए थे। ये मंदिर इनसे भिन्न होंगे। मध्य मंदिरमें एक लेख किसी यात्रीका है जो वि. सं. १२२६ चाहपान राज्यका है। A. P. R. V. India 1906 में यहांके लेखोंकी नकल दी है। नं. २१३७-३८ में जैन दि० आचार्योके नाम इस तरह हैंमूलसंघ सरस्वती गच्छ वलात्कारगण कुंदकुंदान्वयी वसंतकीर्तिदेव विशालकीर्तिदेव, दमनकीर्तिदेव, धर्मचंद्रदेव,रत्नकीर्तिदेव,प्रभाचंद्रदेव, पद्मनंदि, शुभचंद्रदेव । इनमेंसे पहले लेख पर सं० १४८३ फागुण सुदी ३ गुरौ निपेधिका जैन आर्या वाई आगमश्री। (सं. नोट-यह आर्यिका आगमश्रीकी स्मृति है।) दूसरेपर फागुण सुदी २ बुधौ सं. १४६५ निपेधिका शुभचन्द्र शिप्य हेमकीर्तिकी । जिनपर ये दो लेख हैं उसी खमेपर किसी साधुके चरणचिन्ह हैं व एक तरफ भट्टारक पद्मनंदिदेव तथा दूसरी तरफ 'भट्टारक शुभचन्द्रदेव अंकित है। इस लेखका नं. २१३९ है। नं. २१४१ पार्श्वनाथ मंदिरके द्वारपर लेख है-महीधरका पुत्र मनोरथका नमस्कार हो सं० १२२६ वैसाख वदी ११ । (३) चित्तौड़-यह प्रसिद्ध किला है, एक तंगपहाड़ी पर है .

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