Book Title: Prachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 130
________________ मध्य भारत। [११७ यः कोपि (९) तिष्ठति तस्य दासस्य दासोऽयं मम दतिस्तु पार (१०) येत् ॥ महाराज गुरु श्रीवासवचंद्रः वैशाख (११) सुदी ७ सोम दिने । उल्था । संवत १० ११ में पवित्रकुली सुंदरमूर्ति शील, शम, दम युक्त, व्यावान, स्वनन परिजनका उपकारी, भव्य पाहिल जो धांगराजासे मान्य है सो श्री जिननाथको नमस्कार करता है। मैंने पाहिलबाग, चंद्रयाग, लघुचंद्रवाग, शंकरवाग, पंचाइलबाग, आमवाग तथा धांगवाडी दान की है, पाहिलवंशके नाश होनेपर जो कोई वंश रहे उसके दासोंका मैं दास हूं सो मेरे इस दानकी रक्षा करे । महाराज गुरु श्री वासवचंद्रके समयमें वैशाख मुदी ७ सोमवार । लेख नं० ८ (ए० ई० पृष्ठ १५३) एक जैन मूर्तिपर-“ओं संवत .१२१५ माघ सुदी ५ श्रीमन् मदनवर्मदेव प्रवर्द्धमान विजयराज्ये गृह पतिवंशे श्रेष्ठिदेदू तत्पुत्र पाहिल्लः पाहिल्लांगरुह साधुसाल्हे तेनेयं प्रतिमा कारितेति । तत्पुत्राः महागण, महीचंद्र, सिरिचंद्र, निनचंद्र, उदयचंद्र प्रभृति । संभवनाथं प्रणमति नित्यं मंगलं महाश्रीः रूपकार रामदेवः ।" । उल्था । भावार्थ-मदनवर्मदेवके राज्यमें संवत १२१५ में गृहपति कुलधारी देदू उसके पुत्र पाहिल, पाहिलके पुत्र साल्हेने प्रतिमा कराई उसके पुत्र महागण आदि नमस्कार करते हैं । नोट-गृहपतिकुल शायद परिवार वंश हो । (२) छत्रपुर नगर-वांदासे. ६४मील । यहां बुद्धेदलाल और अमरसिंह चौधरीके बनाए जैन मन्दिर हैं।

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