Book Title: Paumchariu ka Kriya Kosh
Author(s): Kamalchand Sogani, Shashiprabha Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 6
________________ प्रकाशकीय अपभ्रंश महाकवि स्वयंभू के 'पउमचरिउ का क्रिया - कोश पाठकों के हाथों में समर्पित करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है। भारतीय संस्कृति में लोक भाषा का विशेष महत्व है । जीवन के विविध पक्षों एवं सांस्कृतिक मूल्यों की अभिव्यक्ति के लिए प्राचीनकाल से ही लोक-भाषा में साहित्य लिखा जाता रहा है। तीर्थंकर महावीर ने धर्म प्रचार के निमित्त तत्कालीन लोक - भाषा 'प्राकृत' का प्रयोग किया । प्राकृत में भरपूर साहित्य लिखा गया है । प्राकृत जब साहित्यिक भाषा बन गई तब एक नई लोक भाषा का जन्म हुआ। वह भाषा थी 'अपभ्रंश' | अपभ्रंश का अर्थ है जन सामान्य की बोली । सम्पूर्ण उत्तर भारत में लम्बे समय तक अपभ्रंश लोक व्यवहार की भाषा बनी रही। यह भारतीय आर्य परिवार की सुसमृद्ध लोक भाषा रही है। आठवीं शताब्दी में स्वयंभू ने अपभ्रंश में साहित्य रचना कर इसे साहित्य के क्षेत्र में सर्वोच्च स्थान दिलाया । अपभ्रंश साहित्य को समझने के लिए अपभ्रंश भाषा का अध्ययन आवश्यक है। 1 दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी द्वारा संचालित 'जैनविद्या संस्थान' के अन्तर्गत 'अपभ्रंश साहित्य अकादमी' की स्थापना सन् 1988 में की गई। अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जयपुर द्वारा मुख्यतः पत्राचार के माध्यम से अपभ्रंश का अध्यापन किया जाता है । अपभ्रंश भाषा को सीखने-समझने को ध्यान में रखकर 'अपभ्रंश रचना सौरभ', 'अपभ्रंश अभ्यास सौरभ', 'अपभ्रंश काव्य सौरभ', 'प्रौढ़ अपभ्रंश रचना सौरभ', 'अपभ्रंश व्याकरण' आदि पुस्तकों का प्रकाशन किया जा चुका है। इसी क्रम में अपभ्रंश महाकवि स्वयंभू के 'पउमचरिउ का क्रिया - कोश' पुस्तक तैयार की गई है। (v) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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