Book Title: Patanjal Yogdarshan tatha Haribhadri Yogvinshika
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
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लिखने की अभी हमारी तैयारी नहीं है, अलवने यह हमारा खयाल हुआ है कि उनके जीवन पर पूरा प्रकाश डालने के वास्ते जैसा चाहिए वैसा उनके ग्रन्थोंका गहरा अवलोकन अभीतक किसीने नहीं किया है वैसा अवलोकन करके निश्चित सामग्रीके आधार पर विशेष लिखनेकी हमारी हार्दिक इच्छा है। परंतु ऐसा सुयोग कब आवेगा यह कहा नहीं जा सकता। अतपय अभीतकके उनके ग्रन्थोंके अवलोकनसे उत्पन्न हुए भावको सिर्फ एक, दो वाक्योंमें जना देना ही समुचित है।
जैन आगमों पर सबसे पहले संस्कृतम टीका लिखनेवाले, भारतीय समय दर्शनोंका सबसे पहले वर्णन करनेवाले, जैन शास्त्रके मूल सिद्वान्त अनेकान्तपर तार्किक रीतिसे व्यवस्थित रूपमें लिखनेवाले और जैन प्रक्रियाके अनुसार योगविषय पर 'नई रीतिसं लिखनेवाले ये ही हरिभद्र हैं। इनकी प्रतिभाने विविध विषयके जो अनेक ग्रन्थ उत्पन्न किये हैं उनसे केवल जैन साहित्यका हो नहीं किन्तु भारतीय संस्कृत, प्राकृत साहित्यका मुख उज्ज्वल है।
१ यह कथन उपलब्ध ग्रन्थोंकी अपेक्षाम समझना अन्यथा हरिभद्रमूरिके पहले भी योगविषय पर लिखनेवाले विशिष्ट जैनाचार्य हए हैं, जिनके अनेक वाक्योंका अवतरण देते हुए हरिभद्रसूरिन योगदृष्टि समुच्चयकी टोकामें ' योगाचार्य' इस प्रतिष्ठासूचक नामस उदेस किया है उमंक लिए दंगो यो० म० श्लो० १४, १९, २२, ३५ आदिकी टीका.
अवतरण वाक्योंसे साफ जान पटता है कि योगाचार्य जैनाचार्य ही थे। यह नहीं कहा जा सकता है कि वे श्वेताम्बर थे या दिगम्बर । उनका असली नाम क्या होगा सो भी मालूम नहीं, इसके लिए विद्वानों को खोज करनी चाहिए। सम्भव है उनके किसी अन्यकी उपलब्धिर्म या अन्यत्र उद्धन विशेष प्रमाणसे अधिक वातोंका पता चले. '।
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