Book Title: Patanjal Yogdarshan tatha Haribhadri Yogvinshika
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ (७) हम अन्य इतिहासज्ञ विद्वानोके इस अनुमानके आधार पर सिर्फ संतोष मान लेते हैं कि योगसूत्रकार यदि महाभाष्यकार ही थे तो उनका समय इ. पूर्व दूसरी शताब्दी माना जाना चाहिए और यदि दोनों भिन्न थे तो योगसूत्रकार पतञ्जलिका समय इ. के बाद दूसरीसे चौथी शताब्दी तकमें माना जाना चाहिए । अस्तु! पतञ्जलिके बाह्य आवरणको निश्चित रूपले जाननेका साधन अभी पूर्णतया प्राप्त न होने पर भी इनकी विचार-आत्माका साक्षात् दर्शन योगसूत्रमें हो ही जाता है जो कम सौभाग्यकी बात नहीं है। इनकी आत्मा इतना काल बीत जाने पर भी योगसूत्रोंमें जागती है। जिसके पास एक बार आनेवाला पाषाण हृदय व्यक्ति भी सिर झुकाये बिना. किबहुना दासानुदास हुए विना नहीं रह सकता । इनके योगसूत्रका थोडे में परिचय करनेके अभिलाषिओंका ध्यान हम प्रस्तावना पृष्ठ ३८ पर 'योगशास्त्र' शीर्षक पेरेकी ओर खींचते हैं और इनके महर्षिपनका परिचय करनेकी इच्छावालोंका लक्ष्य "महर्षि पतञ्चलिकी दृष्टिविशालता' शीर्षक भागकी ओर खींचते है प्रस्तावना पृ. ४६ (२) हरिभद्र- इस नामके प्रवेताम्बर संप्रदायमें अनेक आचार्य हुए हैं । पर योगविंशिकाके कर्ता प्रस्तुत हरिभद्र उन सबमें पहले है जो याकिनि महत्तरा सूनुके नामसे और १४४४ ग्रन्थप्रणेताके रूपसे प्रसिद्ध है उनका समय वि. की आठवीं नववीं शताब्दी अभी निर्णय किया गया है। उनके जीवनका हाल अभी तक जो कुछ प्रकट हुआ है उसकी अपेक्षा अधिक १ देखो वुड अनुवादित योगदर्शनकी इग्लीश प्रस्तावना । २ देखो श्रीजिननिजयजी लिखित हरिभद्रदरिका समयनिर्णय जैन साहित्यशोधक अक १ । ३ देखो प हरगोविददास लिखित जीवनचरित्र। - - -

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 249