Book Title: Parshwanath ka Chaturyam Dharm
Author(s): Dharmanand Kosambi, Shripad Joshi
Publisher: Dharmanand Smarak Trust

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Page 5
________________ ग्रन्थकर्ताका परिचय साधुचरित कोसम्बीजीका जन्म गोवा के पासके साखवल नामक छोटे से गाँव में एक सारस्वत ब्राह्मण के घर ९ अक्टूबर १८७६ को हुआ था । २३ वर्ष की अवस्था तक वे साधारण मराठी लिखना पढ़ना ही जानते थे । भगवान् बुद्धकी जीवनी पढ़ कर उनकी बौद्ध धर्मके प्रति जिज्ञासा इतनी बढ़ी कि एक दिन वे भगवान् बुद्धकी ही तरह सहधर्मिणी और घर द्वार छोड़कर निकल पड़े । संस्कृत पढ़नेके लिए पहले वे पूना गये, फिर ग्वालियर और फिर काशी । काशीके अन्न सत्रों में दो वर्ष तक बड़े कष्टसे उदरनिर्वाह करते हुए उन्होंने संस्कृत व्याकरण और साहित्यका अध्ययन किया । इसके बाद वे नेपाल और गया जाकर एक बौद्ध भिक्षुकी सलाह से सिंहल पहुँचे और कोलम्बोके 'विद्योदय- परिवेण ' नामक विद्यापीठके महास्थविर सुमंगलाचार्यसे उन्होंने प्रवज्या ग्रहण कर ली और उन्हींकी अधीनतामें वे पाली ग्रन्थोंका अध्ययन करने लगे । सिंह के बाद बर्मा भी गये । इसके बाद वे नेशनल कालेज कलकत्ता में और कलकत्ता यूनिवर्सिटीमें पाली भाषाके अध्यापक नियुक्त हुए। सन् १९१०, १२, २६ और ३१ में हारवर्ड यूनिवर्सिटी (अमेरिका) के प्रोफेसर डा० जेम्स एच० गुड्सने कोसम्बीजीको 'विसुद्धिमग्ग के सम्पादनके लिए चार बार अमेरिका बुलाकर रक्खा। सन् १९११ से १८ तक वे पूनाके फर्ग्युसन कालेज में पालीके प्रोफेसर रहे, फिर गुजरात विद्यापीठके पुरातत्त्व मंदिर में पाली भाषाके आचार्यके रूपमें काम करने लगे । इसके बाद लेनिनग्राड ( रूस ) में बौद्ध संस्कृतिके अध्ययन के लिए जो संस्था खुली, उसका कार्य करनेके लिए रूस गये । १९३० के प्रारम्भ भारत लौटते ही सत्याग्रह संग्राम में उन्हें जेल जाना पड़ा । इसके बाद १९३४ में आप बनारस गये । १९३७ में बिड़ला - बन्धुओंकी सहायता से परेलमें 'बहुजन बिहार' की स्थापना हुई और उसमें आप लगभग दो वर्ष तक रहे । ४ जून १४७ को सेवाग्राम (वर्धा) में आपका शरीरान्त हो गया । wwwwww

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