Book Title: Panch Ratna Author(s): Jain Education Board Publisher: Jain Education Board View full book textPage 9
________________ | अब निश्चिंत होकर नारायण देशाटन को चल पड़ा। पाँच रत्न सेठजी ने बड़ी निस्पृहता से इशारा कियादेख, मैं तो इसको छुता भी सेठजी, आपका नहीं, जा उस कोने में एक एहसान कभी नहीं तरफ रख दे, वापस लौटकर / भूलूंगा, मैं जल्दी जल्दी ले जाना। लौट आऊँगा। O POOOOO उसने अपने हाथ से मंजूषा एक कोने में रख दी। कुछ दिन बाद दीवाली आई। सफाई|| सेठ ने जैसे ही रत्न हाथ में लिये उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई। करते-करते वह मंजूषा सेठ के हाथ में आ|| परन्तु उसे लगा जैसे उसके कानों में कुछ गूंज रहा होगई। खोली तो सेठ चकित रह गया। । र सेठ, पराया धन पाप हैं, इतने कीमती का पिण्ड होता है, यह रत्न ! एक-एक रत्न । काला नाग है। N करोड़ों का होगा। OTIVAVA सेठ के हाथों से मंजूषा छूटकर गिर पड़ी। उसमें से दो रत्न बाहर निकल पड़े।। छन्न।Page Navigation
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