Book Title: Panch Ratna
Author(s): Jain Education Board
Publisher: Jain Education Board

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Page 8
________________ | पिताजी कहते थे, हमारे सामने वाला सेठ बलभद्र बड़ा ही सत्यनिष्ठ धर्मात्मा है, जिनधर्मी श्रावक है। क्यों न इसी के पास धरोहर सुरक्षित रखकर यात्रा पर चलूँ। पाँच रत्न दूसरे दिन नारायण रत्न-मंजूषा को कपड़े में लपेटकर सेठ बलभद्र की गद्दी पर पहुंचा और प्रणाम करके बोला सेठजी, पहचाना। अरे भाई, हाँ, नारायण सेठजी, मैं कुछ दिनों के लिये देशाटन पर जाना चाहता हूँ। मेटी एक धरोहर है, आपके पास अमानत में रख लीजिए। ना ना, पराई धरोहर साक्षात् अग्नि होती है। मैं तो पराया धन छूना भी पाप मानता हूँ। सेठजी, इसे छूने की जरूरत क्या है। आप अपने यहाँ यह पेटी रखी रहने दीजिए। मैं लौटकर ले लूँगा। DOOOO LIL Poopu000 LILIO ILUIIIIII 20881033000

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