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पाँच रत्न
बहू रथ से उतरकर घर द्वार तक आई और रुक गई। उसने पास खड़ी महिला से कहा
माँ जी, सेठजी को अकेले
यहाँ बुलाओ। मैं कुछ बात करना चाहती हूँ।
सेठ बलभद्र दौड़े-दौड़े आये। बहू ने श्वसुर के चरणों में प्रणाम किया। फिर सेठजी के कान में कहा
पिताजी ! उस ब्राह्मण की धरोहर वाले पाँचों रत्न लेकर आइये।
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सेठ बलभद्र तो जैसे आकाश से नीचे गिरे और खजूर में लटक गये। वह बोले
कौन से रत्न बहू !
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पिताजी ! यह अवसर विवाद का नहीं है, आपके वंश बीज
की रक्षा का प्रश्न है।
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