Book Title: Panch Ratna
Author(s): Jain Education Board
Publisher: Jain Education Board

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Page 27
________________ दुराग्रहका फल इस तरह चलते-चलते आगे सोने की खान मिली तो बाकी | सबने चाँदी फेंककर सोना ले लिया; किन्तु लोहे वाला अपनी ऐंठ में लोहा लिये ही चलता रहा। आखिरी में हीरे की खान आ गई। सभी व्यापारी हर्ष से उछल पड़े। हीरे इकट्ठे करने के बाद वे चलने लगे तो उन सभी को लोहा व्यापारी पर बड़ी दया आ रही थी। उन्होंने कहाभाई, अब तो समझ लो। ऐसा मौका जिन्दगी में बार-बार नहीं आता। फिर सिर पीट पीटकर पछताओगे। वाह, अब तो तकदीर खुल गई, सोना फेंको, हीरे बाँध लो। vi तुम मेरे पीछे क्यों पड़े हो? एक बार कह दिया न, मैंने जो ले लिया सो ले लिया। मैं तुम्हारी तरह बदलूराम नहीं हूँ। सभी हीरे बटोरने लगे। सभी साथियों के कहने पर भी वह नहीं माना। हीरे|| लोहा व्यापारी ने एक डलिया चने ले लिये और नगर में घूमलेकर सभी आगे चल दिये। चलते-चलते सभी || घूमकर चने बेचने लगा। कैसे भी अपना गुजारा चलाने लगा। व्यापारी एक बड़े नगर में आ गये। लोहा व्यापारी अकेला बाजार में लोहा बेचने चला गया। (ताले भुने चने। इस पूरे लोहे के बदले तुम्हें एक डलिया चने मिल सकते हैं। चाबाबचने ले लो TILLO 7 SNI ठीक है दे दो।

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