Book Title: Panch Ratna
Author(s): Jain Education Board
Publisher: Jain Education Board
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन ऐजुकेशन बोर्ड प्रस्तुति LOOK LEARN पाच त्न Rs.20.00 Idol \ Vol Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *"युवा हृदय सम्राट पूज्य गुरुदेव श्री नम्रमुनिजी म.सा. की प्रेरणा...' अर्हम युवा गुप पस्ती द्वारा परोपकार के कार्य... एक नया प्रयोग... YUVA YUVA GROUP GROUP करुणा के सागर पूज्य गुरुदेव... जिनके हृदय में दूसरों के हित, श्रेय और कल्याण की भावना रही है... उनके चिंतन से एक अभिनव विचार का सृजन हुआ और उन्होने मानवसेवा, जीवदया के कार्य के साथ अध्यात्म साधना करने के लिए “अर्हम युवा ग्रुप” की स्थापना की..! _पूज्य गुरुदेव के प्यार से प्रेरणा पाकर यह महा अभियान समस्त मुंबई के युवक-युवतीओं का एक मिशन बन गया ! इस महा अभियान में प्रतिदिन स्वेच्छा से नये नये युवक युवतियाँ जुडते जा रहे हैं। यह उत्साही युवावर्गहर माह हजारों किलो की पस्ती एकत्र करके उसका विक्रय करता है और उस राशी से परोपकार के कार्य करता है। पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन और निर्देशन के अनुसार ये युवक-युवतीयाँ हर माह के प्रथम रविवार को पार्टी, पिक्चर या प्रमाद | करने के स्थान पर परमात्मा पार्श्वनाथ की जपसाधना करके मनकीशांति और समाधि प्राप्त करते हैं। दूसरे रविवार को सेवा का कार्य करने के लिए घर-घर जाकर अखबारों की पस्ती इकठ्ठी करते हैं और कड़वे-मीठे अनुभव द्वारा अपने अहम्को चूरकर, Ego को Go कर, सहनशील और विनम्र बनते हैं। तीसरे रविवार को पस्ती से पाये गये रूपयो से गरीब, आदिवासी, बीमार, अपंग, अंधे, वृद्ध आदि की जरूरत पूरी करते है केवल वस्तुयें या अनाज, दवा आदि ही नहीं देते अपितु उन्हें प्यार, सांत्वना आश्वासन और आदर भी देते हैं। उनकी दर्दभरी बातें सुनते हैं, अनाथ बच्चों के साथ खेलते हैं और वृद्धजनों को व्हीलचेर पर बैठाकर उनकी इच्छानुसार प्रभु दर्शन आदि कराने भी ले जाते हैं । वे कत्लखाने जाते हुए पशुओं को बचाते हैं । बीमार, घायल पशु-पक्षीयों का इलाज भी कराते हैं। ___ बदले में उन्हें क्या मिलता है? उन्हें एक प्रकार का आत्मसंतोष प्राप्त होता है । वे जो अनुभव करते हैं उसके लिए कोइ शब्द ही नही है। उनका दिल अनुकंपा से भर उठता है। __इन युवाओं ने आजतक दुनिया के सिक्के का सिर्फ एक ही पहलू-सुख ही देखा था। अब सिक्के का दूसरा पहलू दुनिया का दुःख, वास्तविकता देखने के बाद उन्हें अपना सुख अनंत गुना बड़ा लगने लगा है। बस! पूज्य गुरुदेव ने आज की युवा पीढ़ी को शब्दों द्वारा समझाने के बदले प्रयोग द्वारा उनका जीवन परिवर्तन कर दिया। प्रयोग और प्रत्यक्ष देखने और अनुभूति करने के बाद समझाने की जरूरत ही नहीं रही। चौथे रविवार को अपने पूज्य गुरुदेव के दर्शन करके, उनके सानिध्यमें उनके शुक्ल परमाणुओं द्वारा अपनी ओरा, अपने भाव और अपने विचारों को शुद्ध करके शांतिपूर्ण, निर्विघ्न अपने सारे कार्य सफल करते हैं और नया मार्गदर्शन... नया बोध... नये विचार पाकर अपना जीवन धन्य बनाते हैं। आप भी जीवन में 'गुरु' द्वारा प्रेरणा पाकर परोपकार के इस महा अभियान में अपना सहयोग देवें और अपना अमूल्य मानव जीवन सफल बनायें। अर्हम ग्रुप के सदस्य बनने के लिए सम्पर्क करें - Ritesh -9869257089,Chetan-9821106360, Jai -9820155598 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमारा संदेश... ज्ञान... ज्ञान के बिना जीवन अधूरा है। बच्चों के लिए ज्ञान प्राप्ति का सरल माध्यम है आकर्षक और रंगीन चित्र... बच्चे जो देखते हैं वही उनके मानस मे अंकित हो जाता है और लम्बे अर्से तक याद भी रहता है। दूसरी बात... आज के Fast युग में बच्चों के पास पढ़ाई के अलावा इतनी साईड एक्टीवीटी है कि उन्हें लम्बी कहानियाँ और बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ने का समय ही नहीं है। हमारे जैनधर्म मे... भगवान महावीर के आगमशास्त्रो में ज्ञान का विशाल भंडार भरा हुआ है। ज्ञाताधर्मकथासूत्र जैसे आगम में कथानक के रूप में भी कहानियों का खजाना है। बाल मनोविज्ञान की जानकारी से हमे ज्ञात हुआ कि बच्चों की रूचि Comics में ज्यादा है । उन्हें पंचतंत्र, रीचीरीच, आर्ची, Tinkle आदि Comics ज्यादा पसंद है और उसे वे दोचार-पाँच बार भी पढ़ते है और Comics एक ऐसाAddiction है जिसे बड़े भी एक बार अवश्य पढते है। यही विषय पर चिंतन-मनन करते हए हमारेमानस में भी एक विचार आया... क्यों न हम भी जैनधर्म के ज्ञान को... हमारे भगवान महावीर के जीवन को, हमारे तीर्थंकर को... बच्चों तक पहुँचाने के लिएComics Book का माध्यम पसंद करे...? शायद यही माध्यम से बच्चों और बच्चों के साथ बड़े भी जैनधर्म के ज्ञान-विज्ञान की जानकारी पाकर अपने आप में कुछ परिवर्तन लायेंगे। परमात्मा के विशाल ज्ञान सागर में से यदि हम कुछ बूंदे भी लोगों तक पहुँचाने में सफल हुएतो हमारा यह प्रयास यथार्थ है। जैनधर्म की क्षमा, वीरता, साहस, मैत्री, वैराग्य, बुद्धि, चातुर्य आदि विषयों की शिक्षाप्रद कहानियाँ भावनात्मक रंगीन चित्रों के माध्यम द्वारा प्रकाशित करने का सदभाग्य ही हमारीप्रसन्नता है। यह Comics हमारे Jain Education Board - Look n Learn के अंतर्गत प्रकाशित हो रही है। to perolehah TAMA Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ccccc प्रस्तावना भगवान महावीर ने श्रावक के सत्य अणुव्रत के दोषों की चर्चा करते हुए कहा है, जो किसी की धरोहर (न्यास) या अमानत देखकर बदनीयत से लौटाने के लिए मुकर जाता है, असत्य प्रपंच करता है तो उसका सत्य अणुव्रत खण्डित होता है। क्योंकि यह विश्वासघात है, धोखा है। जिसके साथ ऐसा विश्वासघात होता है उसकी आत्मा तिलमिला उठती है, दु:खी होती है और वह उस विश्वासघाती के प्रति वैर व प्रतिशोध की आग में जलने लगता है। इसलिए इस प्रकार का विश्वासघात महापाप है। वैर बढ़ाने वाला है। 'पाँच रत्न' कहानी में एक गरीब ब्राह्मण की अमानत हड़पकर करोड़पति बनने वाले सेठ की कहानी है। जिसने अपनी ईमानदारी की प्रसिद्धि के बल पर गरीब ब्राह्मण के पाँच मूल्यवान रत्न दबा लिए। विश्वासघात की चोट से छटपटाता ब्राह्मण मरकर नाग बनता है और अपने रत्नों के बदले में सेठ के जवान नवविवाहित पुत्रों की जान ले लेता है। आत्मा का दर्शन तथा दुराग्रह का फल, ये दो कहानियाँ जैन आगम रायपसेणिय सूत्र से ली गई हैं। जो केशीकुमार श्रमण ने श्वेताम्बिका नगरी के नास्तिक राजा प्रदेशी को सुनाईं और इनके द्वारा आत्मा की पहचान करने तथा सत्य को समझकर अनाग्रह बुद्धि से ग्रहण करने की प्रेरणा दी। अपनी बात का दुराग्रह रखने वाला अन्त में पछताता है। इस पुस्तक की तीनों कहानियाँ जीवन के लिए प्रेरणादायी तथा सत्य की खोज करने की.प्रेरणा देती हैं। (प्रकाशक एवं प्राप्ति स्थान ) LOOK मूल्य २०/- रु. LEARN Jain Education Board PARASDHAM Vallabh Baug Lane, Tilak Road, Ghatkopar (E), Mumbai-400077. Tel: 32043232. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पार चम्पापुर में बलभद्र नाम का एक धनवान सेठ रहता था। सेठ के पाँच पुत्र थे। पाँचों ही बड़े विनीत, सुन्दर और बुद्धिमान् थे। PIANTara SODLAXE WARN इस भरेपूरे सुखी परिवार को देखकर लोग कहतेदेखो, पुण्य का फल तो सेठ भाई, बड़ा धर्मनिष्ठ है। बलभद्र भोग रहा है। घर में ) व्यापार में नीति और सुख-सम्पत्ति, आज्ञाकारी सन्तान । सत्यनिष्ठा इसके जैसी और राज में प्रतिष्ठा नहीं देखी। | उसकी दुकान पर सुबह से शाम तक दूर-दूर के ग्राहकों की भीड़ लगी रहती थी सत्यनिष्ठा का प्रत्यक्ष फल देखो। सेठ का व्यापार दिन दूना रात चौगुना बढ़ता ही जा रहा है। Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाँच रत्न सेठ की हवेली के सामने ही नगर का राजपुरोहित श्रीधर रहता था। उसके एक पुत्र था नारायण नारायण खेलने और घूमने-फिरने का शौकीन था। श्रीधर उसको बार-बार समझाता पुत्र, तू विद्याध्ययन अरे, इसे क्या कमी है जो कर। ब्राह्मण होकर विद्या ) इतनी-सी उम्र में पोथियाँ नहीं पढ़ेगा तो भीख पढ़े। अभी तो इसके माँगनी पड़ेगी। खेलने के दिन हैं। उकख Cooleaaaa माता के लाड़-प्यार के कारण नारायण पढ़-लिख नहीं सका। मौज शौक में ही उसका बचपन बीत गया। एक दिन नारायण को अकेला छोड़कर उसके माता-पिता स्वर्गवासी हो गये। नारायण दुःखी होकर सोचने लगा वह बैठा-बैठा दुःखी हो रहा था। तभी उसकी नजर दीवार पर लिखे एक श्लोक पर पड़ीमाता शत्रु पिता वैरी येन बालो न पाठित:/# अब मैं अकेला क्या करूँ? पढ़ा-लिखा नहीं होने के कारण | पिता का पद भी नहीं मिलेगा। DO. KORE सच ही है। अगर माता-पिता ने मुझे पढ़ाया होता तो आज मैं इस तरह बेकार नहीं बैठा होता। थोड़े दिन शोक में बिताने के बाद एक दिन उसने सोचा अभी तो पिताजी का कमाया हुआ बहुत धनं है, इसलिए चिन्ता की कोई बात नहीं। अभी जवानी में तो देशाटन करके मौन करना चाहिए। #ये माता-पिता अपनी संतान के शत्रु हैं जिन्होंने अपनी सन्तान को शिक्षित नहीं किया। Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वह देशाटन पर जाने की तैयारी करने लगा। घर का सामान सँभालते समय अचानक एक पुरानी मंजूषा उसके हाथ में आ गई। मंजूषा खोली तो वह चकित रह गया वाह, कितने चमकदार हैं ये पाँच रत्न | जरूर कभी राजा ने प्रसन्न होकर पिताजी को भेंट दिये होंगे। पाँच रत्न अब मुझे कमाने की क्या जरूरत है। अब तो खूब मौज-शौक करूँगा, देश-विदेश घूमूँगा। देशाटन से आकर फिर एक रत्न बेचूँगा। बड़ा घर बन जायेगा। विवाह हो जायेगा। बस मौज से रहूँगा । वह मंजूषा को कपड़े में लपेटकर नगर के प्रसिद्ध जौहरी की दुकान पर ले गया और रत्न दिखाये। रत्न देखकर जौहरी चकित रह गया। नहीं, बस, कीमत जानना चाहता था। सहु कीमती रत्न हैं। कम से कम एक-एक करोड़ का एक-एक होगा। क्या इन्हें बेचना चाहते हो? 509 नारायण मंजूषा लेकर घर वापस आ गया और भविष्य के स्वप्न सँजोकर वह मन ही मन गुदगुदाने लगा। फिर उसने सोचा सुखद भविष्य के सपने देखने लगा परन्तु पीछे से मंजूषा किसी ने चुरा ली तो। इसे कहीं सुरक्षित रख देना चाहिए। Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | पिताजी कहते थे, हमारे सामने वाला सेठ बलभद्र बड़ा ही सत्यनिष्ठ धर्मात्मा है, जिनधर्मी श्रावक है। क्यों न इसी के पास धरोहर सुरक्षित रखकर यात्रा पर चलूँ। पाँच रत्न दूसरे दिन नारायण रत्न-मंजूषा को कपड़े में लपेटकर सेठ बलभद्र की गद्दी पर पहुंचा और प्रणाम करके बोला सेठजी, पहचाना। अरे भाई, हाँ, नारायण सेठजी, मैं कुछ दिनों के लिये देशाटन पर जाना चाहता हूँ। मेटी एक धरोहर है, आपके पास अमानत में रख लीजिए। ना ना, पराई धरोहर साक्षात् अग्नि होती है। मैं तो पराया धन छूना भी पाप मानता हूँ। सेठजी, इसे छूने की जरूरत क्या है। आप अपने यहाँ यह पेटी रखी रहने दीजिए। मैं लौटकर ले लूँगा। DOOOO LIL Poopu000 LILIO ILUIIIIII 20881033000 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | अब निश्चिंत होकर नारायण देशाटन को चल पड़ा। पाँच रत्न सेठजी ने बड़ी निस्पृहता से इशारा कियादेख, मैं तो इसको छुता भी सेठजी, आपका नहीं, जा उस कोने में एक एहसान कभी नहीं तरफ रख दे, वापस लौटकर / भूलूंगा, मैं जल्दी जल्दी ले जाना। लौट आऊँगा। O POOOOO उसने अपने हाथ से मंजूषा एक कोने में रख दी। कुछ दिन बाद दीवाली आई। सफाई|| सेठ ने जैसे ही रत्न हाथ में लिये उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई। करते-करते वह मंजूषा सेठ के हाथ में आ|| परन्तु उसे लगा जैसे उसके कानों में कुछ गूंज रहा होगई। खोली तो सेठ चकित रह गया। । र सेठ, पराया धन पाप हैं, इतने कीमती का पिण्ड होता है, यह रत्न ! एक-एक रत्न । काला नाग है। N करोड़ों का होगा। OTIVAVA सेठ के हाथों से मंजूषा छूटकर गिर पड़ी। उसमें से दो रत्न बाहर निकल पड़े।। छन्न। Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाँच रत्न रत्नों को देखते ही सेठ के मन में लालच आ गया। | रत्न को छूते समय एक बार उसका दिल जरूर धड़काबस, ये दो रत्न बेचकर ही मैं मैंने दूसरे अणुव्रत में नियम लिया कोटिध्वज बन जाऊँगा। नारायण था "न्यासापहार नहीं करूंगा" मेरा क्या बिगाड़ लेगा। कौन मेरे व्रत का क्या होगा? साक्षी है इसका। (CROREASYA | उसने दो रत्न निकाले और बाजार में बेचकर दो करोड़ मुद्राएँ प्राप्त | कर ली। कुछ ही समय में सेठ ने पाँच मंजिला भवन खड़ा कर लिया, घर के आगे चाँदी का रथ खड़ा रहने लगा। लोग देखते ही रह गये किन्तु धन के लालच ने सेठ की विवेक बुद्धि पर पर्दा डाल दिया। पाँच वर्षों बाद नारायण लौटकर आया। यात्रा में सब धन खर्च हो जाने से वह दरिद्र जैसा दीख रहा था। वह सीधा बलभद्र सेठ के घर आया। सेठ ने नारायण को पहचानते हुए भी अजनबीपन दिखाया अरे, कौन है? क्यों आया है। सेठजी, मुझे। यहाँ? हट, हट। देखता नहीं, पहचाना नहीं? मैं हूँ सीधा भीतर चला आया बिन नारायण। मेरी रत्नों बुलाया मेहमान कौन है त? की पेटी दे दीजिए। सेठ बलभद्र के पास एकदम इतनी लक्ष्मी कहाँ से आ गई?/ *व्यासापहार = अमानत में खयानत पूरे चम्पा नगरी में सबसे ऊँची हवेली सेठजी की ही है। Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेठ चिल्लाया सेठ ने सेवकों से कहा पाँच रत्न हैं, क्या बक रहा है। रत्नों की पेटी? तेरे बाप ने रखी थी यहाँ । कभी देखे हैं रत्न कैसे होते हैं। कौन है यह पागल, धक्के मारकर बाहर निकालो इसे झूठमूठ ही इतना बड़ा इल्जाम लगा रहा है। बेशर्म, चोर उचक्का ! ARG 7 नारायण ने घबराकर हाथ जोड़े सेठजी, मैंने परदेश जाते समय आपके पास अपनी धरोहर रखी थी याद है न? iona नौकरों ने नारायण को धक्के मारकर बाहर निकाल दिया। वह दुकान के बाहर खड़ा होकर बड़बड़ाने लगा सेठ, मेरी रत्नों की पेटी तुमने हड़प ली है। तू चोर है, बेईमान है। मैं धरोहर हजम नहीं होने दूँगा। Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाँच रत्न इस आघात से नारायण पागल हो गया। वह राजमार्ग पर चीखता बड़बड़ाता घूमने लगामेरी रत्नों की पेटी ( अरे देखो, इतने बड़े सेठ ने हड़प ली। सेठ धर्मात्मा सेठ पर झूठा बलभद्र बेईमान है। कलंक लगा रहा है। Vers E जरूर यह पागल हो गया है। दुःख और भूख से बेहाल हुआ नारायण एक दिन मकान || सेठ बलभद्र मन ही मन प्रसन्न हो गयाकी छत पर से कूदकर मर गया। उसकी लाश पड़ी चलो, आज यह काँटा देखकर लोग एकत्र हो गये। भी निकल गया। अब अरे, यह तो वही पागल सारे रत्न मेरे। युवक है। देखो, ऐसे धर्मात्मा पुरुष को बदनाम करने का फल| आखिर कुत्ते ।। की मौत मर गया न। 2000-2 AKA Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाँच रत्न | देखते ही देखते श्रीकान्त सीढ़ियों पर लुढ़क गया। कुछ समय बाद बलभद्र के सबसे बड़े पुत्र श्रीकान्त का विवाह हुआ। नववधू को विदा उसके मुँह से झाग निकलने लगे। सेठ दौड़कर आया। कराकर श्रीकान्त अपने भवन पर लाया। भवन की | हाय, मेरे बेटे ) अरे, इसे तो काले जल्दी से जहर सीढ़ियाँ चढ़ने लगा। छह सीढ़ी पार कर सातवीं | को क्या हुआ? नाग ने काट लिया। चसकर थूक दो। सीढ़ी पर पैर रखते ही वह जोर से चीखाहाय, काट लिया, बचाओ। VVV O उपचार किया, परन्तु कोई फायदा नहीं हुआ। कुछ ही देर में श्रीकान्त || सभी ने मिलकर शव की अन्त्येष्टि की। के प्राण पखेरू उड़ गये। सेठ बलभद्र भी बेहोश होकर गिर पड़ा। पूरे नगर में जिधर देखो यही चर्चा थीउधर बहू भी सीढ़ियों पर गिर पड़ी। चारों तरफ हाहाकार मच गया। सुना भाई, क्या गजब हो गया। जहाय ! यह कैसा सेठ बलभद्र का बड़ा बेटा अन्याय हो गया। विवाह होते ही चल बसा। बेचारी शादी होते ही विधवा हो गई। Doगलकाल हाँ भाई ! कोई भारी पापकर्म किया होगा सेठ ने। गुप्त पाप इसी प्रकार अपना फल देते हैं। Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाँच रत्न थोड़े दिन बाद शोक दूर हुआ। लोगों ने सेठ को समझाया अब शीघ्र ही दूसरे बेटे शशिकान्त का विवाह कर दो। वातावरण बदल जायेगा, पुराने घाव भर जायेंगे। | एक वर्ष बाद शशिकान्त का विवाह हुआ। विवाह करके शशिकान्त नववधू को लेकर भवन में प्रवेश करने लगा। जैसे ही उसने सातवीं सीढी पर पैर रखा एक काला नाग सीढ़ी के नीचे से निकलकर सामने आ गया। SNA C-WOMEN हे भगवान ! यह काला नाग...। R56.:... D OXO शशिकान्त सीढ़ियों पर गिर पड़ा। मुँह से झाग। निकलने लगे। लोग घबराकर चीखने लगे roJ भगवान ! यह नाग ने काट लिया।/ toos वैद्यजी को बुलाओ। क्या वज्र टूट पड़ा। कौन से पाप उदय में आ रहे हैं। और नाग ने शशिकान्त के पैर में जोर से डंक मारा। हाय ! हाय ! काट लिया। नाग ने काट लिया। बचाओ। भागो! काला नाग डंक मारकर गायब हो गया। कुछ ही देर में शशिकान्त की मृत्यु हो गई। 10 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोड़े दिन तक घर में शोक का वातावरण छाया रहा। सेठ रो-रोकर कहता रहता मेरे दो जवान बेटे उठा लिए भगवान ने। अब संसार में मेरा क्या रखा है, मैं किसलिए जीऊँ? लोगों ने समझाया सेठजी ! जो होना था हो गया। हर शनिश्चर को गाँव नहीं जलता । हर बार ऐसा थोड़े ही होगा। पाँच रत्न एक वर्ष बीत जाने पर एक दिन दूसरे नगर से कुछ लोग आये। बोले सेठजी ! आपके पुत्र. रविकान्त के लिए हमारी कन्या का सम्बन्ध लेकर आये हैं। नहीं भाई ! अब मैं किसी की बेटी को भरी जवानी में विधवा नहीं देखना चाहता। मैं अब अपने पुत्र का विवाह नहीं करूँगा। आखिर बहुत समझाने-बुझाने पर सेठ ने रविकान्त का विवाह किया। परन्तु उसी प्रकार बहू को लेकर सीढ़ियाँ चढ़ते ही तीसरे बेटे को भी साँप ने काट लिया। Cooo Copic PECTES SI 11 30.2103 QOOOO 04 ब ००००० Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाँच रत्न घर में चार-चार जवान विधवा बहुओं को देखकर सेठ अपने भाग्य को कोसता रहता और उसके दो वर्ष बाद चौथे पुत्र लक्ष्मीकान्त का भी यही हाल हुआ। हे प्रभु ! ऐसे क्या घोर पाप 20000 किये थे मैंने हर बार मुझ पर ही यह वज्रपात होता है। मेरा धर्म कहाँ गया? | तीन वर्ष बीत गये। धीरे-धीरे समय की| लडकी वाला बोला- सेठजी. संसार में मौत मरहम से दिल के घाव भर गये। सेठ | सभी को आती है। कहते हैं रावण के एक लाख और पुरानी बातें भूल गया। एक दिन उसी नगर सगर चक्रवर्ती के साठ हजार पुत्र हुए और चले गये। फिर का एक सेठ आया। भी संसार का प्रवाह नहीं रुका। सेठनी ! आपका छोटा पुत्र ENTRY हरिकान्त विवाह योग्य हो गया । है। अब उसका रिश्ता कीजिए। सेठ झुंझला उठा 24NUXRONORAMEENA तो क्या आप भी चाहते हैं कि आपकी बेटी भी इन चारों की तरह भरी जवानी में विधवा हो जाये। नहीं, नहीं, मैं हरिकान्त का विवाह नहीं करूंगा। मरने से अच्छा है कि वह कुँवारा ही रहे। Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाँच रत्न सेठजी, जो भाग्य पर भरोसा करता है, भगवान भी उसका भरोसा रखते हैं। आप मेरी बात पर विश्वास कीजिए। अब ऐसा नहीं होगा। बलभद्र ने चौंककर पूछाक्यों नहीं होगा? क्या आप किसी ज्ञानी से पूछकर आये हैं? AAAA0 |लड़की वाले ने कहा ऐसा ही कुछ समझ सकते हैं। मैं जो कहता हूँ उस पर विश्वास रखें, मेरी पुत्री शुभमती आपके घर की रक्षा करेगी। लड़की वाले का अडिग विश्वास देखकर सेठ के मन में आशा की किरण फूट पड़ी। कुछ देर विचार करने के बाद उसने विवाह की स्वीकृति दे दी और एक दिन हरिकान्त बहू को स्थ में बैठाकर घर द्वार पर पहुँचा। लोग चौकन्ने होकर खड़े थे। आशंका और भय भरी आँखों से देख रहे थे। देखो भाई! नाग सेठजी के इस बार क्या इस पुत्र को भी होता है? CIA नहीं छोड़ेगा। कहा Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाँच रत्न बहू रथ से उतरकर घर द्वार तक आई और रुक गई। उसने पास खड़ी महिला से कहा माँ जी, सेठजी को अकेले यहाँ बुलाओ। मैं कुछ बात करना चाहती हूँ। सेठ बलभद्र दौड़े-दौड़े आये। बहू ने श्वसुर के चरणों में प्रणाम किया। फिर सेठजी के कान में कहा पिताजी ! उस ब्राह्मण की धरोहर वाले पाँचों रत्न लेकर आइये। किन 00 1101 सेठ बलभद्र तो जैसे आकाश से नीचे गिरे और खजूर में लटक गये। वह बोले कौन से रत्न बहू ! 14 पिताजी ! यह अवसर विवाद का नहीं है, आपके वंश बीज की रक्षा का प्रश्न है। 100 10 ( Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाँच रत्न सेठबहू, तुम्हें कैसे मालूम? | इस रहस्य को तो मेरे और भगवान के सिवाय कोई नहीं जानता। SOLO OE सेठ घबराया हुआ घर के अन्दर दौड़ा। तुरन्त रत्नों का डिब्बा और एक कटोरी मिश्री मिला दूध लेकर वापस आया बहू, यह लो। इसमें से मैंने दो रत्न खर्च कर दिये हैं। केवल तीन रत्न ही बचे हैं। पिताजी ! देर मत कीजिए, कहीं कोई अनर्थ न घट जाये। पानी अने से पहले ही पाल बाँध लीजिए और हाँ, एक कटोरे में मिश्री मिला गाय का दूध भी लेकर आइये। शुभमती ने डिब्बा ओढ़नी में छिपा लिया और दूध का कटोरा लेकर सीढ़ियाँ चढ़ने लगी। लोग आशंका से सिहर उठे अभी नाग निकलकर आयेगा। शुभमती छठी सीढ़ी पर चढ़ी और बैठ गई। सातवीं सीढ़ी पर उसने दूध का कटोरा रखा, रत्नों का डिब्बा निकालकर रखा और हाथ जोड़कर बोली- . हे नाग देवता ! मेरे श्वसुर ने जो विश्वासघात आपके साथ किया, उस दुष्कृत्य को क्षमा करें। अपने बचे हुए। तीन रत्न लेकर सन्तोष करें। बहू को भी नहीं छोड़ेगा। TOG Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाँच रत्न तभी सर्ट-सर्ट करता एक लम्बा नाग सीढ़ियों के नीचे से निकला। सभी लोग सहमकर दूर-दूर हो गये। हे नाग देवता ! मैं अपने शीलधर्म की साक्षी से आपसे प्रार्थना करती हूँ, मुझे मेरे सुहाग की भीख दीजिए। DOOR P2000 VIDIOS नाग ने कटोरे में से दूध पीया। और वापस चला गया। POOOOOOO OCCO OG CAD 40)ro ലത് फिर रत्न के डिब्बे में से एक रत्न उठाया। Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाँच रत्न चारों तरफ से लोगों ने शुभमती पर फूलों की वर्षा की। सेठ बलभद्र ने कहा सती शुभमती की जय । बहू, यह सब क्या रहस्य है। हमें बताओ तो सही। Ev 63 शुभमती आगे बोली वही नाग अपना बदला लेने के लिये इस भवन में आकर छुपा और एक-एक करके आपके चार पुत्रों का काल बना। परन्तु आज मैंने उससे क्षमा माँगी और उसकी धरोहर वापस लौटायी तो शान्त होकर आपके पुत्र को जीवनदान दे दिया। ६० छ शुभमती ने कहा पिताश्री ! जो बीज बोया जाता है, वह अवश्य ही अंकुरित होता है। आपने ब्राह्मण पुत्र के पाँच रत्नों की धरोहर दबा ली थी। उसके साथ विश्वासघात किया, वही ब्राह्मणपुत्र आर्त्तध्यान से मरकर नाग बना । सेठ ने आश्चर्य से पूछा परन्तु उसने एक ही रत्न क्यों लिया? 17 Q000 क्यों कि चार रत्नों के बदले वह आपके चार पुत्रों की जान जो ले चुका है। उसका हिसाब बराबर । O O 10 40 0 6 Sa ܘ 0 Q 0.0 Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाँच रत्न सेठ ने आश्चर्य से पूछाबहू, तुम्हें यह सब कैसे मालूम हुआ? 070 Coo पिताश्री ! मैंने एक ज्ञानी से यह सब जाना और यह भी जाना कि मैं सौभाग्यवती रहूँगी, इसीलिये मैंने यह उपाय किया। सेठ आत्मग्लानि से पश्चात्ताप करने लगा-1 सचमुच मैं महापापी हूँ। सरा विश्वासघाती हूँ। ब्राह्मण की धरोहर दबाकर मैंने महापाप किया और उसका घोर दण्ड भी पा लिया। देखो ! विश्वासघात करने का कैसा फल मिला। समाप्त चरित्र बोध : श्रावक के दूसरे व्रत में नियम दिलाया जाता है-"किसी की धरोहर नहीं माऊंगा' किसी की अमानत हड़पकर उसके साथ विश्वासघात करना महापाप है। जिसके साथ विश्वासघात होता है, उसकी आत्मा अत्यन्त व्याकुल और संतप्त रहती है, जिस कारण गहरी शत्रुता बँध जाती है। जन्म-जन्म तक यह वैर का बदला प्रतिशोध के रूप में चलता रहता है। प्राचीन जैन साहित्य की यह कथा हमें विश्वासघात के महापाप से बचने की शिक्षा देती है। Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीन समय में श्वेताम्बिका का राजा प्रदेशी कट्टर दुराग्रह का फल माहितक था। उसने केशीकुमार भ्रमण नामक ज्ञानी आचार्य से आत्मा के विषय में चर्चा की। आचार्य के तर्कों से प्रभावित तो हुआ वह, परन्तु अपनी पकड़ नहीं छोड़ रहा था। तब केशीकुमार ने कहाराजन् ! जो अपने असत्य पक्ष का दुराग्रह रखता है, वह अन्त में उस लौह वणिक की तरह पछताता है। राजा के पूछने पर केशी श्रमण ने ये कथा कही राजनगर नाम का एक सुन्दर नगर था। अचानक एक दिन वहाँ भूकम्प आया। देखते-देखते बड़े-बड़े भवन ढह गये। चारों तरफ त्राहीत्राही मच गई। loae कुछ ही देर में नगर श्मशान जैसा दीखने लगा। चारों तरफ मलबे का ढेर लग गया। बचे हुये कुछ व्यापारियों आपस में विचार किया देखते-देखते सब कुछ बर्बाद हो गया, अब हम क्या करें, कहाँ जायें? 19 Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुराग्रह का फल एक अनुभवी व्यक्ति ने कहा अनुभवी व्यक्ति ने कहा हम नगर छोड़कर दूसरी जगह चलें। हमारा | धन ही तो नष्ट हुआ है, भाग्य तो नहीं। आपत्ति तो मनुष्य के लिये परीक्षा की घड़ी है। साहसी और बुद्धिमान व्यक्ति विपत्ति में भी सम्पत्ति की खोज करते हैं। फिर हम क्या करें? यहाँ तो सब विध्वंस हो चुका है। सब ने उसकी बात मान ली और वे मिलकर रोजी-रोटी की खोज में नगर छोड़कर चल पड़े। जंगल को पार करके वे. एक पहाड़ी प्रदेश में पहुँच गये। वहाँ जगह-जगह पर लोहा बिखरा हुआ दिखाई दिया तो उस अनुभवी व्यक्ति ने कहा देखो, इस मिट्टी में 'लोहा है, जरूर यहाँ लोहे की खान है। हम लोहे के गट्ठर बाँध लेते हैं। आगे कोई नगर आयेगा वहाँ लोहा/wat बेचकर कुछ धन कमा लेंगे। 2015 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुराग्रह का फल सभी ने अपने पास की धोती चादर आदि लेकर लोहे || सभी ने लोहा फेंककर अपने गट्ठर में सीसा बाँध लिया। के गट्ठर बाँध लिये। सिर पर बोझा लादे कुछ ही । आगे चले तो एक जगह उन्हें मिट्टी में सीसे के कण एक साथी ने लोहा नहीं फेंका तो उन्होंने कहाबिखरे दिखाई दिये। उस अनुभवी ने कहा अरे भाई, तू भी लोहा फेंककर रुको, इस मिट्टी में शीशा । सीसा क्यों नहीं ले लेता। सीसे बहुत है। लोहा फेंको और की तो कीमत ज्यादा मिलेगी। सीसा बाँध लो। - APP .000.00-50 परन्तु लोहे वाले व्यापारी ने मुँह बिगाड़कर कहा तुम लोग अस्थिर मन वाले हो, बार-बार कर बदल जाते हो। मैं तो अपने विचार का पक्का आदमी बार ले लिया सो ले लिया। सभी व्यापारी आगे चलने लगे। कुछ दूर पर ताँबे की खान आई तो सभी खुश होकर कहने लगे| लो, अब तो ताँबा मिल गया, ) सीसा फेंको, ताँबा बाँध लो। 220 कार तुम लोग चाहे जो लो, मैं तो। अपने विचार का पक्का हूँ। लोहा नहीं छोडूंगा। | एक को छोड़कर सभी व्यापारियों ने सीसा फेंककर ताँबा बाँध लिया 21 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुछ दूर जाने पर चाँदी की खान आई तो उन सभी ने तबा फेंककर चाँदी बाँध ली। उस लोहे वाले व्यापारों से भी कहा भाई, देख हमारी तकदीर खुल गई। अब तो सँभल जा, लोहा फेंककर चाँदी ले ले। दुराग्रह का फल अरे, तुम लोग तो गिरगिट की तरह बार-बार रंग बदलते जाते हो, मर्द तो वह होता है जो सदा इकरंगा रहे। लोहे के व्यापारी ने उन्हें डाँट दिया खबरदार, जो मुझसे बार-बार कहा । मैं अपनी आन-बान अकड़-पकड़ पर मरने को तैयार हूँ। तुम्हारे जैसा ध्वजा का साथी नहीं हूँ । १७५ भाई, यह झूठा अहंकार है । समझदार व्यक्ति हमेशा लाभ का सौदा लेता है। तू अब तो मान ले, लोहे के बदले चाँदी ले ले, तेरी किस्मत बदल जायेगी। 22 उन्होंने समझाया अरे भाई, भाग्य ने अवसर दिया है तो इसका लाभ उठा ले । अपनी झूठी अकड़ छोड़, लोहा फेंककर चाँदी बाँध ले। वह सिर पर लोहे की गठरी उठाये आगे चल दिया। बड़बड़ाने लगाये कौन होते हैं मेरी किस्मत बदलने वाले। मैंने तो सदा चट्टान की तरह स्थिर रहना सीखा है। Mik Meng Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुराग्रहका फल इस तरह चलते-चलते आगे सोने की खान मिली तो बाकी | सबने चाँदी फेंककर सोना ले लिया; किन्तु लोहे वाला अपनी ऐंठ में लोहा लिये ही चलता रहा। आखिरी में हीरे की खान आ गई। सभी व्यापारी हर्ष से उछल पड़े। हीरे इकट्ठे करने के बाद वे चलने लगे तो उन सभी को लोहा व्यापारी पर बड़ी दया आ रही थी। उन्होंने कहाभाई, अब तो समझ लो। ऐसा मौका जिन्दगी में बार-बार नहीं आता। फिर सिर पीट पीटकर पछताओगे। वाह, अब तो तकदीर खुल गई, सोना फेंको, हीरे बाँध लो। vi तुम मेरे पीछे क्यों पड़े हो? एक बार कह दिया न, मैंने जो ले लिया सो ले लिया। मैं तुम्हारी तरह बदलूराम नहीं हूँ। सभी हीरे बटोरने लगे। सभी साथियों के कहने पर भी वह नहीं माना। हीरे|| लोहा व्यापारी ने एक डलिया चने ले लिये और नगर में घूमलेकर सभी आगे चल दिये। चलते-चलते सभी || घूमकर चने बेचने लगा। कैसे भी अपना गुजारा चलाने लगा। व्यापारी एक बड़े नगर में आ गये। लोहा व्यापारी अकेला बाजार में लोहा बेचने चला गया। (ताले भुने चने। इस पूरे लोहे के बदले तुम्हें एक डलिया चने मिल सकते हैं। चाबाबचने ले लो TILLO 7 SNI ठीक है दे दो। Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुराग्रह का फल डीरे लाने वाले व्यापारियों में से एक ने नगर के || उस व्यापारी ने कुछ हीरे बेचकर नगर में एक बड़ी हवेली खरीदी जौहरी की दुकान पर हीरे दिखाये। जौहरी बोला-||और आराम के साथ रहने लगा। एक दिन हीरे का व्यापारी अपनी हवेली में बैठा था। तभी उसने फेरी वाले की आवाज सुनीकल सेठ, तुम्हारा एक-एक हीरा लाखों चने ले लो, अरे, यह तो। का है। मूंगफली ले लो हमारा साथी है, लोहे वाला.. सुमकलाम पाका Dooooo सेठ ने नौकर भेजकर फेटी वाले को बुलवा लिया। उसे फिर उसने फेरी वाले की आँख में आँख डालकर पूछाफटे-चिथड़ों में लिपटे देखा तो बड़ी दया आई- ॥ फेटी वाले, मुझे नहीं मालिक, आप जैसे पहचानते हो? पहले सेठ के दर्शन आज पहली बार चक्कर ही किये हैं। किसी को कंकर किसी को मिला हीरा, INकभी देखा है? KOOON Voodootoo GOOG वैभवशाली कपड़ों की वजह से फेरीवाले ने उसे पहाचाना नहीं। 24 Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुराग्रह का फल सेठ बोला SOO.OLOYAN याद है, तुम हम एक साथ राजनगर से निकले थे। रास्ते में तुमने लोहा भरा था, हमने हीरे। 600Cer OKES ब XOX SOSOXO फेरी वाला कुछ देर तक घर-घूरकर सेठ को देखता रहा। उसको पिछले दृश्य याद आने लगे। लोहे की गठी लिये चल रहा है। साथियों ने हीरे दिये। ८८ उसने हीरे फेंक दिये। वह चक्कर खाकर आँगन में गिर गया। नौकरों ने पानी के छींटे मारे तो उसे होश आया। वह फूट-फूटकर रोने लगा हाय, मेरी फूटी तकदीर, मैं तो इनको गालियाँ देता था। तुम सब बदलूराम हो, मैं मर्द हूँ। मेरी किस्मत खराब थी जो मैंने इनकी बात नहीं मानी। अड़ा रहा। 25 Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुराग्रह का फल सेठ ने उसे समझाया जो आदमी अच्छाई को सामने देखकर भी अपनी झूठी जिद पर अड़ा रहता है; और बुराई से ही चिपका रहता है। उसका यही हाल होता है। Rohial ര്യ GOOO DD अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत। फिर भी सेठ ने अपनी मेब से सोने की कुछ मोहरें निकालकर दीं क्यों, अब तो मालिक, इसी सोने की मोहरें ले ) झूठी अकड़ ने बर्बाद लोगे या नहीं? किया है मुझे। KGARN OO QO समाप्त कथाबोध ज्ञानी आचार्यों ने कहा है जो व्यक्ति अज्ञान दशा में असत्य को ग्रहण कर चुका है, परन्तु जान । होने पर, सत्य का दर्शन होने पर भी अगर अपने दुराग्रह और अहंकारवश सत्य को स्वीकार नहीं करता तो वह झूठी पकड़ वाला अंत में इसी प्रकार पछताता है। आधार-रायपसेणिय सुत्त Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आत्मा का दर्शन एक बार केशीकुमार श्रमण से राजा प्रदेशी ने कहा-आप कहते हैं | आत्मा शरीर में रहती है, परन्तु मैंने तो एक आदमी के शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके देखा, कहीं भी आत्मा दिखाई नहीं दी। तब केशीकुमार ने चार लकड़हारों का उदाहरण देकर उन्हें समझाया। एक गाँव में चार लकड़हारे थे। रोज सुबह आसपास के जंगलों में जाते, लकड़ियाँ काटते, गट्ठर बाँधकर लाते और सायंकाल नगर में आकर बेच देते। आज तो बहुत लकड़ियाँ ) ( हाँ, आई आज सुबह जल्दी) इकट्ठी हो गईं। भी तो निकल गये थे। AR 110 TIL एक बार कई दिनों तक खूब वर्षा हुई। लकडहारे|| दूसरे ने कहाजंगल में लकड़ियाँ काटने नहीं जा सके। जब वर्षा यहाँ से दस कोस दूर एक घना जंगल है। सुना है वहाँ बन्द हुई तो चारों एकत्रित हुए। एक बोला | टूटी हुई सूखी लकड़ियाँ बहुत पड़ी हैं। हम वहीं चलें। क्यों भाई, क्या बात । ऐसी वर्षा में सुखी लकड़ियाँ है। आज लकड़ियाँ लेने मिलेंगी कहाँ? और गीली लकड़ी) नहीं चलोगे? / कोई खरीदेगा नहीं। Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीसरे ने कहाहम कच्चा सामान और अग्नि साथ ले लेते | हैं। एक खाना पकायेगा, बाकी तीनों लकड़ियाँ काट लेंगे। आत्मा का दर्शन खाने का सामान आदि लेकर चारों दूर जंगल में चले गये। उनमें से जो एक कमजोर था उसे खाना पकाने का काम दे दिया गयातू शाम तक हमारे लिये खाना पकाकर रखना। हम तेरे लिये लकड़ियाँ ले आयेंगे। बूढ़े ने उसे समझाते हुए कहा चौथे ने सोचा देख, इस हंडिया में आग है। अगर आग बुझ जाये तो इस अरणि की लकड़ी से आग निकाल लेना और खाना तैयार रखना। अभी से भोजन की क्या मल्दी है। कुछ देर विश्राम कर लूँ और फिर भोजन तैयार कर लूँगा। | फिर तीनों लकड़हारे दूर जंगल में सूखी लकड़ियाँ काटने में लग गये। Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आत्मा का दर्शन वह एक वृक्ष की छाया में लेट गया। लेटते ही उसे नींद वह लकड़ियाँ इकट्ठी कर हंडिया से आग निकालने लगा आ गई। जब नींद खुली तो देखाHAL अरे सरजनोपनि ओह, अब क्या करूँ। आग ओर जा रहा है, जल्दी-जल्दी तो सब बुझ गई। भोजन बना लूँ। उसने अरणि लकड़ी ली। उसके दो टुकड़े किये अरे, आग नहीं निकली। तभी उसे याद आयाअरे हाँ,काका ने अरणि लकड़ी से आग | प्रकट करने को कहा था। सो अभी आग जलाता है। फिर चार टुकड़े किये ओह, अब भी आग नहीं जली। अब खाना कैसे पकाऊँगा?) 29 Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आत्मा का दर्शन वह सिर पर हाथ रखकर सोचने बैठ गया और|| उसने अरणि लकड़ी के आठ-दस टुकड़े किये फिर भी आग मन ही मन साथियों पर झुंझलाने लगा- की चिंगारी नहीं फूटी तो उन्हें गालियाँ देने लगाअरणि की लकड़ी में तो कहीं आग है ही नहीं, कैसे मूर्ख हैं, मुझसे क्या खाक जलेगी। झूठ बोले। अगर मुझे यही पता होता तो पहले से लाई गई आग को सँभालकर रखता। वह गुस्से से भर्राया। इधर-उधर घूमने लगा। तभी तीनों साथी गट्टर लेकर आ गये। बोले खाना तैयार है न, बहुत कड़ाके की भूख लगी है। वह साथी उन पर झल्लायाखाना कैसे बनाता। तुम लोग खुद मूर्ख हो और मुझे भी मूर्ख बना दिया। Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वे बोले तुमने झूठमूठ क्यों क्या बात हुई ) कह दिया कि अरणि लकड़ी से आग भैया। प्रकट कर लेना, इसमें आग कहाँ है। आत्मा का दर्शन उसने अरणि लकड़ी के टुकड़े उनके सामने फेंक दिये। तब बूढ़े काका ने लकड़ी ली और उसके दो टुकड़ों को आपस में रगड़ा। देख, चिंगारियाँ निकल रही हैं न, आग । इसी में है या नहीं। 42 यह देखकर उसने अपना सिर पीट लिया हैं, मुझे क्या पता रगड़ से आग प्रकट होती है। मैं तो इसके टुकड़े कर रहा था। समझदार लकड़हारे ने कहा आग अरणि में ही है, परन्तु आग प्रकट करने के लिये उसके टुकड़े, नहीं, घर्षण करना पड़ता है। समाप्त . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . कथाबोध श्रमण केशीकुमार ने राजा को कहानी सुनाकर समझाया-राजन् ! इसी तरह शरीर के भीतर। ज्योतिस्वरूप आत्मा रहता है, परन्तु शरीर के टुकड़े करने से उसका दर्शन नहीं हो सकता। तप, ध्यान-योग द्वारा शरीर को तपाने से ही आत्मा रूप ज्योति का दर्शन होता है। आधार-रायपसेणिय सुत्त। Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मधु बिन्दु के समान है काम-भोग काम-भोग (इन्द्रिय सम्बन्धी विषय-सुख) भोगने के समय तो सुखकारी लगते हैं, परन्तु उनके अनुराग (मोह) में आसक्त होने वाला जीव अन्त में दुःख क्लेश और पीड़ा को प्राप्त करता है। काम-भोगों की असारता तथा क्षणभर के सुख के बदले दीर्घकालीन दुःखों की परम्परा बताने के लिए आचार्यों ने मधु बिन्दु का दृष्टान्त दिया है। एक युवक बहुत वर्षों तक परदेश में रहकर व्यापार करता रहा। बहुत-सा धन कमाकर वह अपने नगर को जा रहा था लम्बा रास्ता पैदल पार करता हुआ युवक एक घने लम्बे जंगल में फंस गया। छोटे संकरे रास्ते में सामने एक भयानक काला जंगली हाथी मिल गया। युवक हाथी से डरकर वापस जंगल की ओर भागने लगा। हाथी भी उसके पीछे-पीछे दौड़ने लगा। अपनी जान बचाने के लिए वह एक घने पेड़ के ऊपर चढ़ गया। पीछा करता हुआ हाथी आ पहुँचा। युवक ऊँची टहनी पर बैठा था। क्रोध में आकर हाथी उस वृक्ष के तने को सूंड से हिला-हिलाकर गिराने की चेष्टा करने लगा। वृक्ष जोर से हिला तो युवक के हाथों की पकड़ ढीली पड़ गई। डाली से हाथ छूटा, वह लटका, उसके ठीक ऊपर मधुमक्खियों का छत्ता था। उससे बूंद-बूंद शहद (मधु) टपक रहा था शहद की बूँद उसके मुँह में गिरी, उसे बड़ा सकून मिला। वृक्ष पर सफेद और काला दो चूहे भी बैठे थे। एक तरफ एक काला तथा दूसरी तरफ सफेद चूहा उन्हीं दोनों टहनियों को कुतर-कुतर कर काटने लग गये। युवक जहाँ लटका था उसके ठीक नीचे एक पुराना सूखा कुआँ था। उसके भीतर जहरीले सांप छुपे थे। ऊपर लटके युवक को देखकर वे भी उसके नीचे गिरने का इंतजार करते फुफकार रहे थे। उसी समय एक विद्याधर उधर से निकला। युवक को मौत के बीच फंसा देखकर उसे दया आ गई। उसने विमान रोका और युवक को पुकारा-"वत्स! देख तेरे चारो तरफ मौत मुंह बाए खड़ी है। ले, मैं विमान तेरे पास ला रहा हूँ। तू इसमें बैठ जा। मैं तुझे सुरक्षित अपने स्थान पर पहुँचा दूंगा। ___युवक बोला-“हे दयालु पुरुष ! एक मिनट रुक जाओ। शहद की एक बूंद और चाट लूँ । बहुत मीठा है यह मधु !' विद्याधर ने उसे समझाया-“मधु का लोभ छोड़, अपने चारों तरफ खड़ी मौत को देख और आ जा इस विमान में।" "एक मिनट ! एक बूंद और ।" इस तरह करते हुए युवक मधु बिन्दु का लोभ नहीं छोड़ सका । थक-हार कर विद्याधर आगे अपने रास्ते चला गया। उपनयः यह संसार ही वृक्षरूप मानव जीवन है इनमें काल (मौत) रूपी हाथी है। काला चूहा रात, सफेद चूहा दिन का प्रतीक है। जो जीवन की डाली को हर क्षण काटे जा रहे है। कुएँ नरक आदि दुर्गति है और मधु बिन्दु के समान संसार के क्षणिक विषय-सुख हैं। विद्याधर के समान सद्गुरु है, जो उसे दुःखों से बचाने के लिए धर्म रूपी विमान लेकर खड़े हैं। परन्तु मोह-मूढ़ जीव (युवक) संसार के सुखों का स्वाद नहीं छोड़ रहा है। सद्गुरु की चेतावनी भी उसे बचा नही सकती। Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान पार्श्वनाथ के प्रगट प्रभावक, असीम आस्थारूप, श्री उवसग्गहरं स्तोत्र की पावन अनुभूति करानेवाला, पोजीटीव एनर्जी के पावरहाउस समान, दिव्य और नव्य पावनता का प्रतीक - पारसधाम SDHAM RASD महानगरी मुंबई के हृदय समान घाटकोपर में पूज्य गुरुदेव श्री नम्रमुनि म.सा. प्रेरित झान, ध्यान और साधना का एक अनोखा आधुनिक तकनीकी द्वारा तैयार किया गया धाम... पारसधाम..! + पारसधाम... एक ऐसा धाम, जहाँ परमात्मा पार्श्वनाथ के दिव्य परमाणु और पूज्य गुरुदेव की अखंड साधना शक्ति के अध्यात्मिक Vibrations प्रतिपल प्रेरणा के साथ परम आनंद और परम शांति की अनुभूति कराता है। यहाँ मानवता की सपाटी से अध्यात्म के मोती तक की गहराई मिलती है। | यहाँ है महाप्रभावक श्री उवसग्गहरं स्तोत्र की प्रभावक सिद्धीपीठिकाजोमनवांछित फल देती है..! यहाँ है ऐसी कक्षाएं जहाँ Look n Learn के बच्चे अध्यात्म ज्ञान प्राप्त करते हैं। यहाँ है अध्यात्म ध्यान साधना की शक्ति का प्रतीकरूप पीरामीड साधना केन्द्र। यहाँ है शांतिपूर्ण विशाल प्रवचन कक्ष जहाँ संतो के एक एक शब्द अंतर को स्पर्श करते हैं। यहाँ हैस्पीरीच्युअल शोपजहाँ उपलब्ध है अध्यात्म ज्ञान, साधना और प्रवचन आदिकी पुस्तकें और C.D.,V.C.D. के यहाँ है एक अति आकर्षक आर्ट गैलेरी जहाँ आगम के रंगीन चित्रों की प्रदर्शनी आपके दर्शन को शुद्ध कर देगी। महाप्रभावक श्री उवसग्गहरं पार्श्वनाथ परमात्मा की स्तुति के अखंड आराधक पूज्य गुरुदेव श्री नम्रमुनि म.सा. की साधना के तरंगो से समृद्ध पारसधाम अध्यात्म की आत्मिक अनुभूति करानेवाला आधुनिक धाम है जो जैन समाज की उन्नति और प्रगति के लिए एक अनोखी मिसाल है। यहाँ के नीति और नियम भी अपने आपमें विशेष महत्त्व रखते हैं। यहाँ आनेवाली व्यक्ति को गुरुदर्शन और गुरुवाणी के लिए प्रथम 10 मिनिट ध्यान कक्ष में ध्यान साधना करके अपने मन और विचारों को शांत करना जरूरी है। तभी गुरुवाणी अंतरमे उतरेगी...! मौन, शांति और अनुशासन यहाँकेमुख्य नियम हैं । यहाँ आनेवाले भक्तों का अनुशासन ही उनकी अलग पहचान है। पारस के धाम में पारस बनने के लिए आईए पारसधाम..! RASD PARASD HAM Vallabh Baug Lane, Tilak Road, Ghatkopar (E), Mumbai - 400 077. Tel: 32043232. Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूज्य गुरुदेव श्री नममुनिजी म.सा. की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन से प्रकाशित Look दस वर्षीय सदस्यता शुल्क 500 रूपये LEARN DILDRENSJARMAGAZINE LOOK LEARN LOOK LEARN Jet live Fruit of FORGIVENESS सचित्र बाल Magazine Lookn Learn (पाक्षिक) प्रत्येक अंक अपनी एक मौलिक विशेषता के साथ प्रकाशित किया जाता है। आज के बच्चे जो इंग्लीश माध्यम में पढ़ते हैं और जिन्हें ज्यादातर कार्टून, पिक्चर और Computer में ही रस है उनको जैनधर्म का ज्ञान उन्हीं की पद्धति से... उन्हीं की पसंद अनुसार कार्टून पिक्चर द्वारा, इंग्लिश, गुजराती और हिन्दी भाषा में देने के लिए Look n Learn बच्चों की एक Magazine हर पंद्रह दिन में प्रकाशित की जाती है। ___ इस पत्रिका में बच्चों के लिए भगवान महावीर का बोध छोटी-छोटी कहानीयों द्वारा, भगवान का जीवन चरित्र, आगम आधारित कहानीयाँ, रंग भरो प्रतियोगिता, प्रश्न-कसौटी द्वारा ज्ञान, जैनधर्म का तत्त्वज्ञान, जैनधर्म के नियम और पूज्य गुरुदेव की मौलिक और सरल शैली में उनका तार्किक समाधान दिया जाता हैं / साथ में हर अंक में इनाम जीतने का अवसर..! बच्चों को यह पत्रिका इतनी पसंद है कि वे एक अंक पढ़ने के साथ ही दूसरे अंक की प्रतीक्षा करने लगते हैं। Took LOOK LEMON LEARNI Mahavir Jayanti Thachines of CREEDY CHILDREN'S JAIN MAGAZINE CHILDREN'S JAIN MAGAZINE CHILDREN'S JAIN MAGAZINE Broten.comamar Loor LOOK LOOK LEARN CELEBRATION OF LEARN LENANI NORMAmmontrowmu. 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