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________________ पाँच रत्न सेठ की हवेली के सामने ही नगर का राजपुरोहित श्रीधर रहता था। उसके एक पुत्र था नारायण नारायण खेलने और घूमने-फिरने का शौकीन था। श्रीधर उसको बार-बार समझाता पुत्र, तू विद्याध्ययन अरे, इसे क्या कमी है जो कर। ब्राह्मण होकर विद्या ) इतनी-सी उम्र में पोथियाँ नहीं पढ़ेगा तो भीख पढ़े। अभी तो इसके माँगनी पड़ेगी। खेलने के दिन हैं। उकख Cooleaaaa माता के लाड़-प्यार के कारण नारायण पढ़-लिख नहीं सका। मौज शौक में ही उसका बचपन बीत गया। एक दिन नारायण को अकेला छोड़कर उसके माता-पिता स्वर्गवासी हो गये। नारायण दुःखी होकर सोचने लगा वह बैठा-बैठा दुःखी हो रहा था। तभी उसकी नजर दीवार पर लिखे एक श्लोक पर पड़ीमाता शत्रु पिता वैरी येन बालो न पाठित:/# अब मैं अकेला क्या करूँ? पढ़ा-लिखा नहीं होने के कारण | पिता का पद भी नहीं मिलेगा। DO. KORE सच ही है। अगर माता-पिता ने मुझे पढ़ाया होता तो आज मैं इस तरह बेकार नहीं बैठा होता। थोड़े दिन शोक में बिताने के बाद एक दिन उसने सोचा अभी तो पिताजी का कमाया हुआ बहुत धनं है, इसलिए चिन्ता की कोई बात नहीं। अभी जवानी में तो देशाटन करके मौन करना चाहिए। #ये माता-पिता अपनी संतान के शत्रु हैं जिन्होंने अपनी सन्तान को शिक्षित नहीं किया।
SR No.006281
Book TitlePanch Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Education Board
PublisherJain Education Board
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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