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आत्मा का दर्शन वह सिर पर हाथ रखकर सोचने बैठ गया और|| उसने अरणि लकड़ी के आठ-दस टुकड़े किये फिर भी आग मन ही मन साथियों पर झुंझलाने लगा- की चिंगारी नहीं फूटी तो उन्हें गालियाँ देने लगाअरणि की लकड़ी में तो कहीं आग है ही नहीं,
कैसे मूर्ख हैं, मुझसे क्या खाक जलेगी।
झूठ बोले। अगर मुझे यही पता होता तो पहले से लाई गई आग
को सँभालकर रखता।
वह गुस्से से भर्राया। इधर-उधर घूमने लगा। तभी तीनों साथी गट्टर लेकर आ गये। बोले
खाना तैयार है न, बहुत कड़ाके की भूख
लगी है।
वह साथी उन पर झल्लायाखाना कैसे बनाता। तुम लोग खुद मूर्ख हो और मुझे भी मूर्ख
बना दिया।