________________
वे बोले
तुमने झूठमूठ क्यों क्या बात हुई ) कह दिया कि अरणि लकड़ी से आग
भैया। प्रकट कर लेना, इसमें आग कहाँ है।
आत्मा का दर्शन उसने अरणि लकड़ी के टुकड़े उनके सामने फेंक दिये। तब बूढ़े काका ने लकड़ी ली और उसके दो टुकड़ों को आपस में रगड़ा।
देख, चिंगारियाँ निकल रही हैं न, आग । इसी में है या नहीं। 42
यह देखकर उसने अपना सिर पीट लिया
हैं, मुझे क्या पता रगड़ से आग प्रकट होती है। मैं तो इसके
टुकड़े कर रहा था।
समझदार लकड़हारे ने कहा
आग अरणि में ही है, परन्तु आग प्रकट करने के लिये उसके टुकड़े,
नहीं, घर्षण करना पड़ता है।
समाप्त
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
कथाबोध
श्रमण केशीकुमार ने राजा को कहानी सुनाकर समझाया-राजन् ! इसी तरह शरीर के भीतर। ज्योतिस्वरूप आत्मा रहता है, परन्तु शरीर के टुकड़े करने से उसका दर्शन नहीं हो सकता। तप, ध्यान-योग द्वारा शरीर को तपाने से ही आत्मा रूप ज्योति का दर्शन होता है।
आधार-रायपसेणिय सुत्त।