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________________ मधु बिन्दु के समान है काम-भोग काम-भोग (इन्द्रिय सम्बन्धी विषय-सुख) भोगने के समय तो सुखकारी लगते हैं, परन्तु उनके अनुराग (मोह) में आसक्त होने वाला जीव अन्त में दुःख क्लेश और पीड़ा को प्राप्त करता है। काम-भोगों की असारता तथा क्षणभर के सुख के बदले दीर्घकालीन दुःखों की परम्परा बताने के लिए आचार्यों ने मधु बिन्दु का दृष्टान्त दिया है। एक युवक बहुत वर्षों तक परदेश में रहकर व्यापार करता रहा। बहुत-सा धन कमाकर वह अपने नगर को जा रहा था लम्बा रास्ता पैदल पार करता हुआ युवक एक घने लम्बे जंगल में फंस गया। छोटे संकरे रास्ते में सामने एक भयानक काला जंगली हाथी मिल गया। युवक हाथी से डरकर वापस जंगल की ओर भागने लगा। हाथी भी उसके पीछे-पीछे दौड़ने लगा। अपनी जान बचाने के लिए वह एक घने पेड़ के ऊपर चढ़ गया। पीछा करता हुआ हाथी आ पहुँचा। युवक ऊँची टहनी पर बैठा था। क्रोध में आकर हाथी उस वृक्ष के तने को सूंड से हिला-हिलाकर गिराने की चेष्टा करने लगा। वृक्ष जोर से हिला तो युवक के हाथों की पकड़ ढीली पड़ गई। डाली से हाथ छूटा, वह लटका, उसके ठीक ऊपर मधुमक्खियों का छत्ता था। उससे बूंद-बूंद शहद (मधु) टपक रहा था शहद की बूँद उसके मुँह में गिरी, उसे बड़ा सकून मिला। वृक्ष पर सफेद और काला दो चूहे भी बैठे थे। एक तरफ एक काला तथा दूसरी तरफ सफेद चूहा उन्हीं दोनों टहनियों को कुतर-कुतर कर काटने लग गये। युवक जहाँ लटका था उसके ठीक नीचे एक पुराना सूखा कुआँ था। उसके भीतर जहरीले सांप छुपे थे। ऊपर लटके युवक को देखकर वे भी उसके नीचे गिरने का इंतजार करते फुफकार रहे थे। उसी समय एक विद्याधर उधर से निकला। युवक को मौत के बीच फंसा देखकर उसे दया आ गई। उसने विमान रोका और युवक को पुकारा-"वत्स! देख तेरे चारो तरफ मौत मुंह बाए खड़ी है। ले, मैं विमान तेरे पास ला रहा हूँ। तू इसमें बैठ जा। मैं तुझे सुरक्षित अपने स्थान पर पहुँचा दूंगा। ___युवक बोला-“हे दयालु पुरुष ! एक मिनट रुक जाओ। शहद की एक बूंद और चाट लूँ । बहुत मीठा है यह मधु !' विद्याधर ने उसे समझाया-“मधु का लोभ छोड़, अपने चारों तरफ खड़ी मौत को देख और आ जा इस विमान में।" "एक मिनट ! एक बूंद और ।" इस तरह करते हुए युवक मधु बिन्दु का लोभ नहीं छोड़ सका । थक-हार कर विद्याधर आगे अपने रास्ते चला गया। उपनयः यह संसार ही वृक्षरूप मानव जीवन है इनमें काल (मौत) रूपी हाथी है। काला चूहा रात, सफेद चूहा दिन का प्रतीक है। जो जीवन की डाली को हर क्षण काटे जा रहे है। कुएँ नरक आदि दुर्गति है और मधु बिन्दु के समान संसार के क्षणिक विषय-सुख हैं। विद्याधर के समान सद्गुरु है, जो उसे दुःखों से बचाने के लिए धर्म रूपी विमान लेकर खड़े हैं। परन्तु मोह-मूढ़ जीव (युवक) संसार के सुखों का स्वाद नहीं छोड़ रहा है। सद्गुरु की चेतावनी भी उसे बचा नही सकती।
SR No.006281
Book TitlePanch Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Education Board
PublisherJain Education Board
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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